Sunday, September 9, 2012

बकने दो जिनको है बकना

चीख-चीख के कर रहें प्रतिद्वंदी वार पे वार
काम-धाम करते नहीं, कर रहें प्रचार
कर रहें प्रचार, कर के डॉलर की बौछार
जनता दर-दर ठोकर खाए, पाए न रोज़गार
और इनको बस लफ़्फ़ाजी सूझे, डायलॉग मारे हज़ार
डायलॉग मारे हज़ार, कहें कूल-कूल है बाहर से, अंदर से अंगार
ओबामा ही इकलौता आदमी, जो करेगा बेड़ा पार

2008 में जब थे पिछले चुनाव
2006 से ही लगे थे कैम्पैनिंग में बराक
सिनेटर थे बस नाम के, सिनेट से न था सरोकार
किताबें लिखना-भाषण देना, यही था इनका कारोबार

जिस महिला से इनकी हुई थी तू-तू मैं-मैं अनेक
जिस महिला से कह दिया की नीति तेरी अ-नेक
उसी महिला को आपने फिर बना दिया सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट
और आज उनके ही पति कर रहें इन्हें डिफ़ेंड

बुश हो, ओबामा हो, चाहे फिर वो हो क्लिँटन
बनना-बिगड़ना तो अपने ही हाथों में सज्जन
सब हैं एक ही थैली के चट्टे-बट्टे, सब का एक ही रंग
कोई नहीं इनमे से ला पाएगा हमारे जीवन में परिवर्तन

अपने ही हाथों में यारो, अपने जीवन की है डोर
बकने दो जिनको है बकना, होने दो जो होता है शोर
हम क्यूँ इनमें वक़्त गवाँए, हम क्यूँ इन्हें दे दें वोट
बकने दो जिनको है बकना, हम तो करते रहेंगे इग्नोर

सिएटल । 513-341-6798
9 सितम्बर 2012

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1 comments:

Anonymous said...

Elections में dollar और लफ्फाज़ी के role की बात बहुत सही लगी!