(1)
जो ढलता है
वो बनता नहीं
मिटता है
अपना अस्तित्व खोकर
एक साँचे में जा सिमटता है
वो देखो
सूरज को देखो
ढलता है
तो डूबता है
शर्म से लाल होकर
पहाड़ के पीछे जा छुपता है
(2)
जो ढलता है
वो ही बनता है
बाकी सब तो
बिखरा-बिखरा सा रहता है
ढलो
किसी साँचे में
सजो
किसी के माथे पे
जो ढलता है
वो ही सजता है
बाकी सब तो
खदान में बिखरा पड़ा रहता है
(3)
जो ढला नहीं
वो बना नहीं
जो बना नहीं
वो मिटा नहीं
जो मिटा नहीं
वो जिया नहीं
24 सितम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
जो ढलता है
वो बनता नहीं
मिटता है
अपना अस्तित्व खोकर
एक साँचे में जा सिमटता है
वो देखो
सूरज को देखो
ढलता है
तो डूबता है
शर्म से लाल होकर
पहाड़ के पीछे जा छुपता है
(2)
जो ढलता है
वो ही बनता है
बाकी सब तो
बिखरा-बिखरा सा रहता है
ढलो
किसी साँचे में
सजो
किसी के माथे पे
जो ढलता है
वो ही सजता है
बाकी सब तो
खदान में बिखरा पड़ा रहता है
(3)
जो ढला नहीं
वो बना नहीं
जो बना नहीं
वो मिटा नहीं
जो मिटा नहीं
वो जिया नहीं
24 सितम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
1 comments:
ढलना मिटाता भी है और बनाता भी है..
बहुत दिनों के बाद आपने "मर्म बर्फ़ का" के format में फिर लिखा है - अच्छा लगा.
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