Friday, August 10, 2012

भेड़ चाल


न समझा है
न जाना है
न ही मन से माना है
और बुन लिया कुछ ऐसा ताना-बाना है
कि सच और झूठ में फ़र्क करना मुश्किल है
देखते ही भीड़
हो जाते शामिल हैं
कि कुछ न कुछ तो वजह होगी
जो गा रही महफ़िल है
हरे राम
हरे राम
राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण
हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे

सिएटल । 513-341-6798
10 अगस्त 2012

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2 comments:

Anonymous said...

इस कविता को पढ़ते पढ़ते, मुझे Swades movie की अपनी absolute favorite lines याद आ गयीं:

राम ही तो करुना में हैं, शांती में राम हैं

राम ही हैं एकता में, प्रगती में राम हैं

राम बस भक्तों नहीं, शत्रु के भी चिंतन में हैं

देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में हैं

राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं

राम तो घर घर में हैं, राम हर आंगन में हैं

मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं

मन से रावण जो निकाले...

Anamikaghatak said...

satya wachan.....badhiya