Friday, August 24, 2012

Old Flame

न नई होती है
न पुरानी होती है
न बूढ़ी होती है
न जवान होती है
लौ तो लौ है
हर सिम्त दीपक की जान होती है

लौ न होती
तो मैं भी न होता
महज हड्डियों का
आडम्बर होता
लौ तो लौ है
आजीवन जीवन की पहचान होती है

देती है रोशनी
तो करती है राख भी
गाते हैं गुण जिसके
ग़ालिब और फ़िराक़ भी
लौ से है दुनिया
और लौ से ही दुनिया शमशान होती है

लौ से है जीवन
लौ से मरण है
लौ में ही तप के
बनते आभूषण हैं
मजनू का आदि
और मजनू का अंत
लैला की त्रैलोकिक मुस्कान होती है

सिएटल । 513-341-6798
24 अगस्त 2012

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1 comments:

Anonymous said...

सुन्दर प्रस्तुति. बधाई.