Friday, August 31, 2012

हाथों के हाथ



जब कभी भी तुम हँसती हो
खुशी भी होती है
और दु:ख भी

खुशी इस बात की कि तुम खुश हो
हँसमुख हो
उन्मुक्त हो

और दु:ख इस बात का कि
तुम्हारा फूल सा चेहरा
मेरे हाथों में नहीं

जब कभी भी तुम आती हो
खुशी भी होती है
और दु:ख भी

खुशी इस बात की कि
तुम मेरे पास हो
तुम्हारी खुशबू
उड़ा रही मेरे होशोहवास है

और दु:ख?
दु:ख इस बात का कि
हाथों में हाथ नहीं

नैन से नैन मिलें
दिल से दिल मिलें
ये क्या कोई कम सौगात है?
और हम हैं कि
हाथों के हाथ
खा रहें मात हैं!

सिएटल । 513-341-6798
31 अगस्त 2012

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1 comments:

Anonymous said...

प्यारी सी कविता है.

"नैन से नैन मिलें
दिल से दिल मिलें
ये क्या कोई कम सौगात है?"

इस बात से मुझे अपनी #1 favorite movie, Veer Zaara, की कहानी याद आ गयी.