थोड़ी हँसी, थोड़ा ख़याल
यही इश्क़ का सामान है
इश्क़ का आसमान
सबका समान है
ईमोजी है
ईमोजी में गुलाब है
उससे और मैं क्या माँगू
जो करती इतना प्यार है
चमन है, भोर है, पत्तियों पर ओस है
इससे ज़्यादा ख़ूबसूरत जन्नत क्या होगी
यह हक़ीक़त है
जन्नत तो फ़क़त एक बहलाव है
दुनिया की तमाम मुसीबतों में भी
चैन की नींद सोता हूँ मैं
न दवा न दारू न दुआ
बस कारण उसका दुलार है
मोहब्बतों से लबालब भरे
समंदरों से ओतप्रोत हूँ मैं
फिर हिज्र क्या, और वस्ल क्या
रोम-रोम में उसका अहसास है
28 अक्टूबर 2018
सैलाना
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हिज्र = बिछड़ना
वस्ल = मिलना
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