दुश्मनी किसी से नहीं
बेरूखी सब से हैं
आपका तो मालूम नहीं
सुखी हम तब से हैं
शाम-सुबह की बात नहीं
बात हर घड़ी की है
घड़ी चले ना चले
धड़कनें बस में हैं
लेन-देन की कालिख में
इन्सान कहाँ बचता है
रिश्ता-नाता जो भी कहे
तोड़ लिया मज़हब से है
सिरफिरों की जमात में
सिर कौन झुकाएगा
कहनेवाले कहते रहे कि
शऊर नहीं हम में हैं
14 अक्टूबर 2018
सैलाना
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