कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
सुबह-शाम रोशन करना
एल-पी पर वही-वही गाने बार-बार सुनना
रेडियो सीलोन पर सुई चिपकाए रखना
घंटों-घंटों बातें करना
बातों का कोई सार न निकलना
चुप रहना
चुप्पी कोई बोझ न लगना
दो काली - न पतली न ज़्यादा मोटी - इलिप्टिकल चोटियों का हिचकोले खाना
कस के काढ़े गए बालों की माँग का चमकना
देखना और देखकर भी नहीं देखना कि
कान में कौन सी बाली है
गाल पे कैसी रंगत है
नहीं देखना और देख लेना कि
वह मुस्कुरा रही है
पलकें झपका रही है
मंद बयार, मीठी धूप, पास का बग़ीचा, मोहल्ले का मन्दिर
सब जन्नत लगना
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
और फिर कभी बात न करना
किसी सगे-सम्बन्धी से भी न पूछना कि वह कैसी है
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
जैसे एक पूरा जीवन जीना
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
और उन्हें फिर एक पल में ही जी जाना
कभी भी
कहीं भी
अड़तीस साल बाद भी
गाड़ी में पेट्रोल डालते वक़्त
मीटिंग से निकलते वक़्त
माउंट रैनियर को देखकर भी न देखते वक़्त
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
और फिर सौ से कम शब्दों में उन्हें कविता मे उतार देना
(समय
कुछ चीज़ों को कितना बड़ा बना देता है
और कुछ को कितना छोटा)
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
और आजीवन उसका ऋणी रहना
और उऋण होने का मन न होना
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
और उन आठ दिनों को
साँसों में बसाए रखना
तरोताज़ा बनाए रखना
जैसे पतझड़ के पत्ते
बारिश की बूँदें
पूनम का चाँद
चिड़िया की चहक
चीड़-ओ-चम्पा की महक
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
और फिर उन आठ दिनों का सपनों में न आना
(जब हक़ीक़त सपनों से हसीन हो तो
सपने शरमा ही जाते हैं)
कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना
और उन आठ दिनों को
सहजता से बार-बार जीना
कितना अजीब है
20 अक्टूबर 2018
सैलाना
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