जब मैं पैदा हुआ
चाँद कुछ यूँ दिख रहा था
और सूरज यूँ
अब दिक़्क़त ये कि
यह मंज़र फिर
न जाने कब होगा
तो क्या ताउम्र इंतज़ार करूँ
जन्मदिन के जश्न का?
जहाँ चाह
वहाँ राह
अब हर साल दो जश्न होते हैं
एक दीप जलाकर
जब चाँद वैसा ही दिखता है
दूजा मोमबत्ती बुझाकर
जब सूरज वैसा ही दिखता है
देवोत्थानी एकादशी, संवत 2075
(मेरा जन्मदिन)
सैलाना
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