Monday, May 20, 2013

Theory of Evolution

अब सब घरों से एंटीने उतर चुके हैं
कूप-मण्डूक के लिए कुँआ ही ब्रह्माण्ड है
और अब हमारे लिए हमारी हथेली में ही ब्रह्माण्ड है

सोचता हूँ
डार्विन की
थ्योरी ऑफ़ ईवाल्यूशन में
विश्वास करूँ या नहीं?

20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

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3 comments:

Madan Mohan Saxena said...

Well said. Good one . Plz visit my blog.

Anonymous said...

मजेदार कविता! मजेदार सवाल!मन में आया कि:

बटन दबाते ही दिख जाता है ब्रह्माण्ड, सैर की चाह मैं रखता नहीं :)

Anonymous said...

आपकी यह बात सच है कि पूरा universe, सारी galaxies एक छोटी सी चीज़ में समा गयीं हैं :)