अब सब घरों से एंटीने उतर चुके हैं
कूप-मण्डूक के लिए कुँआ ही ब्रह्माण्ड है
और अब हमारे लिए हमारी हथेली में ही ब्रह्माण्ड है
सोचता हूँ
डार्विन की
थ्योरी ऑफ़ ईवाल्यूशन में
विश्वास करूँ या नहीं?
20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
कूप-मण्डूक के लिए कुँआ ही ब्रह्माण्ड है
और अब हमारे लिए हमारी हथेली में ही ब्रह्माण्ड है
सोचता हूँ
डार्विन की
थ्योरी ऑफ़ ईवाल्यूशन में
विश्वास करूँ या नहीं?
20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
3 comments:
Well said. Good one . Plz visit my blog.
मजेदार कविता! मजेदार सवाल!मन में आया कि:
बटन दबाते ही दिख जाता है ब्रह्माण्ड, सैर की चाह मैं रखता नहीं :)
आपकी यह बात सच है कि पूरा universe, सारी galaxies एक छोटी सी चीज़ में समा गयीं हैं :)
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