आज नहीं, कल नहीं
साल-दो-साल से ये रोग नहीं
दुनिया में कोई नहीं
जिसे हुआ लोभ नहीं
लोगों की बात छोड़िए
हम भी तो निर्दोष नहीं
बेटा हो या बेटी हो
स्कूल में एडमिशन के लिए
डोनेशन देते वक्त
होता हमें क्षोभ नहीं
चाचा हो या मामा हो
किसी की भी सिफ़ारिश से
ट्रेन में हमें बर्थ मिले
तो करते हम विरोध नहीं
यहाँ तक कि
खुद की ही शादी में
लेन-देन के रिवाज़ का
किया प्रतिरोध नहीं
मगर फिर भी
नारे हम लगाएंगे
दुनिया को जताएंगे
सच पे चले हैं हम
दूध के धुले हैं हम
फ़िक्सिंग को फ़िक्स करो
स्पॉट को क्लीन करो
दुनिया की तमाम चोरी-चकारी
एक झटके में विलीन करो
29 मई 2013
सिएटल ।
513-341-6798
साल-दो-साल से ये रोग नहीं
दुनिया में कोई नहीं
जिसे हुआ लोभ नहीं
लोगों की बात छोड़िए
हम भी तो निर्दोष नहीं
बेटा हो या बेटी हो
स्कूल में एडमिशन के लिए
डोनेशन देते वक्त
होता हमें क्षोभ नहीं
चाचा हो या मामा हो
किसी की भी सिफ़ारिश से
ट्रेन में हमें बर्थ मिले
तो करते हम विरोध नहीं
यहाँ तक कि
खुद की ही शादी में
लेन-देन के रिवाज़ का
किया प्रतिरोध नहीं
मगर फिर भी
नारे हम लगाएंगे
दुनिया को जताएंगे
सच पे चले हैं हम
दूध के धुले हैं हम
फ़िक्सिंग को फ़िक्स करो
स्पॉट को क्लीन करो
दुनिया की तमाम चोरी-चकारी
एक झटके में विलीन करो
29 मई 2013
सिएटल ।
513-341-6798
2 comments:
"फ़िक्सिंग को फ़िक्स करो
स्पॉट को क्लीन करो"
मज़ेदार lines और अच्छा word play!
कविता में बात सही है कि daily life में फायदे के लिए वैसे ही काम होते हैं जो बाहर की दुनिया में बड़े scale पर होते हैं। पर बाहर देखकर हमें गुस्सा आता है और अपनी life में हम easily accept कर लेते हैं।
nice poem
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