Monday, May 20, 2013

मेरा सुख-दु:ख

कल एक सौ सात था
तो दिल को करार था


आज एक सौ छत्तीस है
तो दिल ग़मगीन है


आँकड़ें भी अजीब हैं
आँकते आँकते
हमें ही
कर देते
तब्दील है


मेरा ही खून है
और मुझसे करता नहीं बात है
सुई की नोक से
कागज़ की पत्ती पर उतर कर
एल-सी-डी स्क्रीन को कह देता अपनी बात है


और मैं भी बेवकूफ़ हूँ
कि अपने ही सुख-दु:ख का
ख़ुद को नहीं अहसास है
जो खून कहे
उसी को
अपने सुख-दु:ख का
मान लेता मापदण्ड हूँ


20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

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3 comments:

Anonymous said...

कविता funny भी है और serious भी। हंसी आयी इस observation से कि खून अपनी बात आपको नहीं, LCD स्क्रीन को कहता है। :) और उसकी बात ही सबके सुख-दुःख का मापदण्ड बन जाती है। :)

मगर please बात को seriously लीजिए। आपने सही कहा है की "कल एक सौ सात था तो दिल को करार था, आज एक सौ छत्तीस है तो दिल ग़मगीन है..." ख़याल रखना बहुत ज़रूरी है।

Anonymous said...

आँकड़ों से नाता, ख़ून से रिश्ता, काहे मन समझ न पाया़़ :)

Anonymous said...

"मेरा ही खून है
और मुझसे करता नहीं बात है...
एल-सी-डी स्क्रीन को कह देता अपनी बात है..."

सही कहा आपने! आजकल अपना ख़ून LCD screen से ज़्यादा बात करता है।