सौदापरस्त दुनिया में अक्सर ऐसा ही है होता
कोई बेचता है कविता तो कोई खरीदता है श्रोता
सस्ता हो सौदा या महंगा हो सौदा
सौदा किसी भी नाम से होता है सौदा
कोई झुकाता है सर तो कोई पकड़ता है पद
ताकि आज नहीं तो कल उसे मिल जाए पद
कोई खरीदता है पद तो कोई बेचता है पद
पाने के बाद फ़िर नहीं कोई छोड़ता है पद
पद वाले छोड़ देते हैं लिखना पद और छंद
नई विचारधारा के लिए पट कर देते हैं बंद
हमेशा आगे कर देते हैं अपने भाई और बंद
नगर-नगर गाते हैं कि समाज में फ़ैला है गंद
समझना हो 'गर भारत-पाकिस्तान का द्वन्द्व
बनाए आप एक संगठन और बनाए पद चंद
हिलेरी और ओबामा को भी मात दे देंगे
पद लोभी जिनके मुख कल तक रहते थे बंद
राहुल उपाध्याय | 27 मार्च 2008क्ष | सिएटल
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Glossary:
पद = 1. feet 2. title 3. stanza
द्वन्द्व = fight, due
Thursday, March 27, 2008
मोल-भाव
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:54 PM
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Labels: world of poetry
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2 comments:
Bahut sahi likha hai aapne, Rahul. Par kavita to khareed nahin sakte shrota, woh to priceless hoti hai.
Bahut hi sahi lekha hai aapne Sir, Main bhi MP se hi hoon. Pankaj Bhatia se aap ke bare main pata chala tha. sanskruti per main bhi aap se sahmat hoon.
sanskar sochen param puneete..
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