पत्थर कुछ सुनता नहीं
दिल कुछ कहता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
मिलते हैं लोग
देते हैं ढोग
भजते हैं भजन
या करते हैं ढोंग
ये तो वे ही जाने
मैं कुछ कह सकता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
मिलते हैं पुजारी
जिनकी जुबान दुधारी
दान-दक्षिणा ले कर
दोह रहे गाय दुधारी
गीता का है ज्ञान
लेकिन आचरण से झलकता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
मिलती है मूर्ति
एकटक घूरती
मैं तो वहीं था
श्रद्धा कहीं दूर थी
प्राण-प्रतिष्ठित हैं
लेकिन सांस कोई भरता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
राहुल उपाध्याय | 16 मार्च 2008 | सिएटल
दिल कुछ कहता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
मिलते हैं लोग
देते हैं ढोग
भजते हैं भजन
या करते हैं ढोंग
ये तो वे ही जाने
मैं कुछ कह सकता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
मिलते हैं पुजारी
जिनकी जुबान दुधारी
दान-दक्षिणा ले कर
दोह रहे गाय दुधारी
गीता का है ज्ञान
लेकिन आचरण से झलकता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
मिलती है मूर्ति
एकटक घूरती
मैं तो वहीं था
श्रद्धा कहीं दूर थी
प्राण-प्रतिष्ठित हैं
लेकिन सांस कोई भरता नहीं
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं
राहुल उपाध्याय | 16 मार्च 2008 | सिएटल
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ढोग = bow before a diety
ढोंग = pretend
जुबान = tongue
दोह = to milk a cow
दुधारी = 1. double edged 2. milk producing cow 3. cash cow
ढोग = bow before a diety
ढोंग = pretend
जुबान = tongue
दोह = to milk a cow
दुधारी = 1. double edged 2. milk producing cow 3. cash cow
2 comments:
bhut khoob.....
Rahul Ji Ye kavita bahut achhi lagi.
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