Sunday, March 16, 2008

मंदिर

पत्थर कुछ सुनता नहीं 
दिल कुछ कहता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

मिलते हैं लोग
देते हैं ढोग
भजते हैं भजन
या करते हैं ढोंग
ये तो वे ही जाने
मैं कुछ कह सकता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

मिलते हैं पुजारी
जिनकी जुबान दुधारी
दान-दक्षिणा ले कर
दोह रहे गाय दुधारी
गीता का है ज्ञान
लेकिन आचरण से झलकता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

मिलती है मूर्ति
एकटक घूरती
मैं तो वहीं था
श्रद्धा कहीं दूर थी
प्राण-प्रतिष्ठित हैं 
लेकिन सांस कोई भरता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

राहुल उपाध्याय | 16 मार्च 2008 | सिएटल
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ढोग = bow before a diety
ढोंग = pretend
जुबान = tongue
दोह = to milk a cow
दुधारी = 1. double edged 2. milk producing cow 3. cash cow

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2 comments:

Keerti Vaidya said...

bhut khoob.....

Anonymous said...

Rahul Ji Ye kavita bahut achhi lagi.