जब हम अपनों के नहीं हुए तो किसी और के क्या होंगे पूछ लो किसी कामयाब से किस्से यही बयां होंगे जवानी यहाँ बुढापा वहाँ भटकेंगे ता-उम्र यहाँ-वहाँ दूर के ढोल लुभाएंगे हम जहां में जहाँ होंगे जब हम अपनों के नहीं हुए... देस में आते थे परदेस के सपने परदेस में आते हैं याद वतन के अपने हम से ज्यादा confused दुनिया में और कहाँ होंगे जब हम अपनों के नहीं हुए ... जिन्होंने हमें सब दिया उन्हें हम क्या दे सकेंगे? इतना सब कुछ होते हुए क्या कुछ भी दे सकेंगे? मदद के वक़्त पर वो वहाँ तो हम यहाँ होंगे जब हम अपनो के नहीं हुए ... 22 अगस्त 2007
Thursday, October 18, 2007
कामयाबी
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:32 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, Anatomy of an NRI, bio, nri
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3 comments:
कामयाबी की कहानी बढ़िया लगी।
बढ़िया है भाई!!
Truly said
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