Thursday, June 20, 2013

केदारनाथ


तूफ़ान आया
आ कर बरस गया
पानी में डूबा शहर
पानी को तरस गया

उफ़ान नदी का
उतर गया
आँखों में
समंदर ठहर गया

इस में भी उसका हाथ होगा
कुछ लेन-देन का हिसाब होगा
समझाते हैं अपने आप को
ढूंढते हैं अपने पाप को

तूफ़ान हो या कोई क़हर हो
खतरे का कोई पहर हो
कोंसते हैं अपने आप को
सहते हैं हर अभिशाप को

कब मुक्ति हो इस पापी की
कब दया हो सर्वव्यापी की

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1 comments:

Anonymous said...

"इस में भी उसका हाथ होगा
कुछ लेन-देन का हिसाब होगा
समझाते हैं अपने आप को
ढूंढते हैं अपने पाप को"

आपने सही कहा कि दुःख के समय में हम सोचते हैं कि भगवान हमें किसी बुरे कर्म की सज़ा दे रहे हैं। लेकिन हम भगवान को अपने माता-पिता कहते हैं। माता-पिता तो कभी बच्चों की गलतियों का हिसाब नहीं रखते और सालों बाद सज़ा देकर उन्हें तड़पता नहीं देख सकते। फिर हम यह कैसे मान लेते हैं की भगवान् हमें किसी पाप की सज़ा दे रहे हैं?

"पानी में डूबा शहर
पानी को तरस गया"

"आँखों में
समंदर ठहर गया"

यह lines दिल को छूती हैं।