होंठों पे नक़ाब रहता है
जहाँ सेनिटाईज़र ले के बंदा चलता है
हम उस विश्व के वासी है
जिस विश्व में कोरोना रहता है
मेहमां जो हमारा होता है
वो ख़तरे से भरा होता है
न जाने कहाँ से हो के आया
थोबड़े पे कहाँ लिखा होता है
दूर से ही करे नमस्कार उसे
चलता-फिरता टाईम बाम्ब लगता है
कुछ लोग जो ज़्यादा जानते है
फ़ॉरवर्ड करके ही वो मानते हैं
ये वेले बैठे व्हाट्सैपवाले
हर मर्ज़ का इलाज जानते है
कोरोना क्या कोरोना के बाप से भी
निपटने का इन्होंने ठेका ले रखा है
जो जिसको सूझा किया उसने
खुद को ही नज़रबन्द किया कुछ ने
कुछ शहर ही छोड़ के भाग गए
तो पिकनिक का मज़ा लूटा कुछ ने
मन्दिरों में भी लग गए ताले अब
अब भगवान से भरोसा उठता है
(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 6 मार्च 2020 । सिएटल
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