Friday, March 13, 2020

मन करता है मैं आनन्द बन जाऊँ

मन करता है
मैं आनन्द बन जाऊँ
ख़ुशियाँ बाँटूँ
हर्ष-उल्लास लाऊँ 
उत्साह जगाऊँ 
मर के अमर हो जाऊँ

फिर सोचता हूँ
कि सबका टायमर तो एक ही है 
यदि सब आनन्द बन गए
तो डॉक्टर कौन बनेगा?
इलाज कौन करेगा?
उसे खाना कौन खिलाएगा
उसे दफ़्तर कौन पहुँचाएगा?
उसका घर कौन बनाएगा?
उसके बच्चों को कौन पढ़ाएगा?
फ़र्नीचर कौन बनाएगा?
कार कौन बनाएगा?
बस कौन चलाएगा?

सच तो यही है कि
आनन्द जो बनते हैं
वे वेले होते हैं
निठल्ले होते हैं
ऊँचे आसन पर बैठकर
वही ज्ञान बाँट सकते हैं कि
ज़िन्दगी लम्बी नहीं 
बड़ी होनी चाहिए

राहुल उपाध्याय । 12 मार्च 2020 । सिएटल

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