बुझता दीपक
बूझा के गया
भेद सारे जग के
बता के गया
जला था हवा से
बुझा भी हवा से
प्रेमियों की ज़िद को
जता के गया
बनाता है जो भी
मिटाता है वो ही
जो दिखता नहीं वो
दिखा के गया
न राख बची है
न परछाई कहीं है
धुएँ में सब कुछ
उड़ा के गया
तेल भी है, बाती भी
साबुत सारी माटी भी
बिन ज्योति सूना-सूना
समझा के गया
23 अक्टूबर 2017
सिएटल | 425-445-0827
http://mere--words.blogspot.com/
1 comments:
एक दिन सबको बुझना है लेकिन उससे पहले उजियारा करो
बहुत सुन्दर
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