न कत्ल हुएँ
न शहीद हुएँ
साँस गई
और अज़ीज़ गएँ
हैं सुनसान रास्ते
दिल-दिमाग खाँसते
आग का पता नहीं
धुआँ बस नापते
ग़रीब तो ग़रीब थे
अमीर भी ग़रीब हुएँ
माना कि इलाज नहीं
पर ऐसा भी नहीं
कि बचाव नहीं
अलग-थलग रहते
तो होता कोई प्रभाव नहीं
लेकिन
इंसान ही ऐसा जीव है
जो होता नहीं क्षीण है
एकता के बल पर
लेता हर जंग जीत है
एकता ही के दम पे
नील उतरे चाँद पे
कदम भले ही एक था
कंधे तो हज़ार थे
हाँ, भाई ही तो थे वो
(और राइट भी)
जो सबसे पहले
उड़े धरा छोड़ के
राम भी थे अकेले नहीं
थे सीता-लखन साथ में
गाँधी भी जब निकल पड़ें
हज़ारों चलें साथ में
आदमी की औक़ात क्या
जो जीते-लड़े बाघ से
चड़ के भी पेड़ पर
बचता कितनी बार ये
साथ हैं
तो आप हैं
मानवता का
विकास है
राहुल उपाध्याय । 11 मई 2021 । सिएटल
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