मौत रही सस्ती हमेशा से ज़िंदगी ही है क़ीमती
मान लो मेरी बात मुझसे राज़ी है हकीम भी
आपकी बातें मेरी समझ में कुछ आतीं नहीं
या तो आप या मैं ही हूँ शायद अफ़ीमची
हमारे हैं तंज वार और आप भी कुछ कम नहीं
ख़ूब पटेगी हमारी और होगी खूब जंग भी
गले मिलने से सारे घुल जाते हैं शिकवे
कौन जाने कब भला आएगी वो रूत भी
आते-जाते रास्तों में गीत भी बोओ कभी
क्या पता कब शाम हो और सुबह की न हो राह भी
राहुल उपाध्याय । 15 मई 2021 । सिएटल
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