दवाई हो तो लेनी चाहिए
ख़ून है तो दिखना चाहिए
इंसान हो तो जीना चाहिए
बात-बात पर न झुकना चाहिए
द्वार हो, खिड़की भी हो
फिर भी महल जेल लगे
तो झोपड़ी है उससे लाख भली
नोटों को चाहे आग लगे
माना कि लोगों के आदर्श हैं हम
उसके बोझ में दबे संघर्ष हैं हम
हैं सीता-राम तो नहीं, पर
उनसे अलग जी सकते हैं हम
राहुल उपाध्याय । 3 मई 2001 । सिएटल
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