छोटे-छोटे रह गए
सूरज भी चला गया
तारे सारे रह गए
रोशनी न खास है
छाँव भी घनी न है
फिर भी रोशनी और छाँव का
आभास तो दे रहे
हर किसी के अवसान में
किसी न किसी का उत्थान है
इक ढल गया
इक उग गया
इक मिट गया
इक बन गया
इक डूब गया
इक उठ गया
इक छुप गया
इक खिल गया
इक खो गया
इक मिल गया
इक सो गया
इक जग गया
हर किसी के अवसान में
किसी न किसी का उत्थान है
काल के कगार पे
न शून्यता
न अभाव है
जो भी जैसा चाहिए
पा रहा संसार है
राजेद्र यादव और के. पी. सक्सेना की याद में
31 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798