Saturday, May 31, 2014

दिन में धूप दिखती है

दिन में धूप दिखती है
तो अजीब सी लगती है

ऐसा लगता है
जैसे मैं किसी फ़िल्म के सेट पर हूँ

या फिर
कुछ भूल रहा हूँ
शायद सब काम पर हैं
और एक मैं ही कामचोर हूँ

एक हल्की सी बेचैनी
और आशंका बनी रहती है
कि
कहीं आज शनिवार न हो कर सोमवार तो नहीं है
और मुझे काम पर जाना हो?

किसी खिड़की-रहित कांफ़्रेन्स रूम में बंद हो कर
ओपन डिस्कशन करना हो
अगले पाँच साल की योजना बनानी हो?

31 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, May 25, 2014

पाँच सवाल

ये माना मेरी जां
मोदी जीते हैं
मगर इसमें इतना
गुरूर किसलिए है?

अमीरों के जलवे
गरीबों की पीड़ा
है जब तक जहाँ में
जश्न किसलिए है?

दो-दो जगह से
चुनावों में लड़ के
किया वोट-नोट जाया
हज़ूर किसलिए है?

करके वो शादी
रहते कुँवारे
ज़िम्मेदारी से भागे
निडर किसलिए है?

मुजरिमों के कर से
पहनते हैं माला
साधुओं सा स्वांग
मगर किसलिए है?

(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित )
25 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

Friday, May 23, 2014

'पास' हुए और दूर हुए

जो जितना ज्यादा कमाता है
वो उतना ही घर कम आता है
यह बात समझ तब आती है
जब देर बहुत हो जाती है

जब बीज कहीं कोई बोता है
तब पता कहाँ होता है
कि फूल खिलेंगे तीस बरसों में
फल पकेंगे दूर वतनों में

और जब कभी वो घर आएगा
यहाँ की आब-ओ-हवा नहीं सह पाएगा
घर का पानी पिलाने को भी
मन तरस-तरस के रह जाएगा

मेहमान की तरह वो आएगा
और मेहमान की तरह चला जाएगा

कुछ गिले भी होगे
कुछ शिकवे भी होगे
पर मन कहाँ सब कह पाएगा

वो 'पास' हुए और दूर हुए
सपने यूँ हमारे चूर हुए

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जो जितना ज्यादा कमाता है
उतना ही कम घर जाता है

'दीवार' के विजय से लेकर के
मुझ अदने अभागे तक को
यह समझ तब आता है
जब घर, घर नहीं रह जाता है
माँ-बाप का नाम तक
स्मार्टफोन के काँटेक्ट्स में
एक इंट्री बन के रह जाता है

जो रहते थे
अब रहे नहीं
कुछ कहनेवाले
कोई बचे नहीं

जब सफलता की सीढ़ी कोई कहीं चढ़ता है
तब उसे पता कहाँ चल पाता है
कि उतरते वक़्त एक बोझ भी होगा
आज खुशी है, कल अफ़सोस भी होगा

हम 'पास' हुए और दूर हुए
किस्से बेवफ़ाई के मशहूर हुए

23 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798


Sunday, May 18, 2014

मैया मोरी मैं-नहीं/मैंने-ही मोदी जीतायो रे

वीसा नहीं था, वीसा मिला
देश को जैसे ईसा मिला


गाँधी गए, मोदी आए
गाँधी के गुजरात से आए
दारू नहीं, चाय पी के
बिन बीवी घर-बार चलाए


सरदार हटा के, सरदार को पूजे
मूर्ति के कीर्तिमान बनाए
असरदार तो थे ही मोदी
अब सरदार बन सरकार चलाए


दु:ख भरे दिन बीते रे भैया
अब सुख आयो रे
रंग जीवन में नयो लायो रे
श्वेत-वर्ण थो ये कमल
भगवा रंग पहनायो रे


मैया मोरी मैं-नहीं/मैंने-ही मोदी जीतायो रे


राजीव गाँधी-वी-पी सिंह,
केजरीवाल-जयप्रकाश नारायण
इन सबसे भी थी आस हमें
कर गए निराश हमें


इस बार क्या कुछ बदलेगा?
भ्रष्टाचार कम होगा?
अंधेरे में उजास होगा?
देश का विकास होगा?
या फिर हमेशा की तरह
शिक्षा-दीक्षा प्राप्त व्यक्ति
वीसा लेने के लिए
सुबह चार बजे कतार में होगा?


18 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

 

Tuesday, May 13, 2014

आज रात इतनी गर्मी थी

आज रात इतनी गर्मी थी
कि चाँदनी धूप लग रही थी
ट्यूलिप्स के लिप्स खुलने लगे थे
और आँख?
आँख होकर भी
आँख नहीं लग रही थी

मैं जग रहा था
सब सो रहे थे
पंखे के शोर में

पंखे के शोर में
ओशन का शोर याद आ रहा था
कुछ गरज रहा था
कुछ बरस रहा था
कोई याद आ रहा था

13 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, May 11, 2014

माँ की प्रशंसा मैं कैसे करूँ?

माँ की प्रशंसा मैं कैसे करूँ?
अपनी खामियाँ मैं कैसे गिनूँ?
जो बीतीं हैं उस शख्स पर
उन यातनाओं को कैसे याद करूँ?

जो हुआ सो बहुत ही बुरा हुआ
किया मैंने भी कुछ अच्छा नहीं
जब कपड़े उतर चुके हैं खुद के
माँ की पूजा मैं कैसे करूँ?

19 साल तक जिसने पाला-पोसा
32 साल से उससे दूर हूँ मैं
झूठी बातें अब लिख के
किसे खुश करने की कोशिश करूँ?

क्या कहेंगी वो
और क्या कहूँगा मैं
कहने को जो था सब कहाँ जा चुका
कागद कारे अब क्यूँ नाहक करूँ?

11 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

Saturday, May 10, 2014

मामीसाब

मासी नहीं
माँ भी नहीं
माँ-सी हैं मगर मामी मेरी

छोटा सा था
भटकता सा था
पिता थे दूर विदेश में
इन्होंने ही थी उंगली थामी मेरी

न गुस्सा किया
न कभी दण्ड दिया
हमेशा मुस्करा के
भरी हामी मेरी

हमेशा 'आप' कहा
बड़ों सा आदर दिया
कभी नज़र न आई इन्हें
कोई खामी मेरी

मेरी पसंद-नापसंद अभी भी याद है
बीवी-बच्चों का भी करतीं लिहाज हैं
भगवान करे हर जन्म में
ये ही हो मामी आगामी मेरी

मैं जहाँ गया, ये मेरे साथ रहीं
अमिट इनकी मुझ पे छाप रही
जिस मामी का मुझ को प्यार मिला
उस मामी को लाखों सलामी मेरी

10 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, May 6, 2014

होंगे फ़ना कदमों में तेरे

होंगे फ़ना कदमों में तेरे
कहता था सनम हमेशा मुझे
रूकेगा कोई, खींचेगा फोटो
इसका न था इल्म ज़रा भी मुझे

बहाके खून
बहारें गईं
दुनिया ने समझा
तमाशा इसे

रगों में बहे
या रंगों में बसे
खूं तो खूं है
चाहे जिस रूप में रहे

मैं जड़ से हूँ निकला
लेकिन जड़ तो नहीं
शीशम के फ़्रेम में
न जड़ दो मुझे
6 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798