बर्फ़ भी है, बहार भी
शीत भी है, श्रृंगार भी
सृष्टि के आधार में 
फूल भी है, खार भी
जैसा बोओ, वैसा काटो
इसने किया विनाश बहुत
इसे छोड़, उसे बोयें
मानव ने किए प्रयास बहुत
सृष्टि के हैं नियम गहरे
इनसे न कभी कोई उबरे
फूल उगाए, शूल भी उगे
घर बनाए, धूल भी उड़े
जब-जब कोई शिशु जन्मे
शिशु हँसे, शिशु रोए
खाए-पीए, डायपर भरे
अभी जगे, अभी सोए
यह सृष्टि है कोई सिनेमा नहीं 
कि हीरो अलग, विलेन अलग
दीपक जले, दीपक बुझे
हवा के ही हाथों सनम
6 मार्च 2015
सिएटल | 513-341-6798
 
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