Saturday, November 28, 2015

नरेन्द्र नरेश हैं, विवेकानन्द नहीं


साधनों से साधना होती नहीं है
वाहनों से वाह-वाह होती नहीं है
ग्रहों का ग्रहण होता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि क्यूँ भारत प्रभारत होता नहीं है?

ससुर सुर में गाते नहीं हैं
कम्बल में कम बल होता नहीं है
दीपक से खाना पकता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि जो बकता है बंदा वो वक्ता नहीं है?

साहस भी सहसा होता नहीं है
फल भी रातोंरात पकता नहीं है
क्रिसमस भी हर माह आता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि अच्छे दिन दो साल में आए नहीं हैं?

अंत में निष्कर्ष यही कि
जब भी हम-आप हों परेशान
बस यही सोचें कि
नरेन्द्र नरेश हैं, विवेकानन्द नहीं

प्रभारत = प्रभा में डूबा हुआ, प्रकाश से ओतप्रोत 

28 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Thursday, November 19, 2015

तुम इतना जो बड़बड़ा रहे हो


तुम इतना जो बड़बड़ा रहे हो
क्या विफलता है जो छुपा रहे हो?

बिहार में हार, वेम्ब्ली में भीड़
किस देश के हो, कहाँ छा रहे हो?

बाहर हो जाओगे, बाहर जाते-जाते
क्या ख़ाक सरकार चला रहे हो

बन जाएँगे बेड़ा गर्क के ये कारण
बार-बार जो जुमले देते जा रहे हो

आश्वासनों का खेल है राजनीति
आश्वासनों से मात खा रहे हो

(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)
19 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827


Saturday, November 14, 2015

दीवाली किसलिए?


दीवाली की
साज-सजावट
साफ़-सफ़ाई 
जगमगाहट
किसलिए थी?
किसके लिए थी?

राम के अयोध्या आने की ख़ुशी में?
या लक्ष्मी के घर आने की संभावना में?

आनेवाला तो
कब का आ भी चुका
और जा भी चुका

रीझाया तो उसे ही जाता है
जो आनेवाला है

लेकिन
लक्ष्मीजी भी इन दिनों घर ही कहाँ आतीं हैं
सीधे बैंक चली जातीं हैं
और वहीं 
इस खाते से उस खाते में
इधर-उधर होती रहतीं हैं

देखनी हो तो
मोबाईल पर बिट्स और बाईट्स के समन्दर में ही
देखी जा सकती हैं

सच तो यह है कि
आदमी लाख मोबाईल हो जाए
शाम को लौट कर घर ही आता है
आदमी चाहे कितना ही बड़ा हो जाए
अभी भी अंधेरों से डरता है
जब भी दीपक जलता है
उसकी लौ से आकर्षित होता है

दीपक प्रज्वलित होते ही
मन प्रफुल्लित होता है
पथ प्रकाशित होता है

14 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Tuesday, November 10, 2015

खील खिलाना अलग है


खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है
खील खिलाना है दीवाली का अनिवार्य अंग
मुस्कुराना मानवता का मज़हब है

मुस्कुराहट है
तो मोहब्बत है
मोहब्बत है
तो हम है

मोहब्बत यक़ीं है
मोहब्बत ज़बाँ है
वादा करो
तो निभाना अवश्य
यह कहती आशिक की धड़कन है

मोहब्बत जवाँ है
मुसल्सल ज़मज़मा है
जिसका अक्स हो रक़्स में
ऐसे इश्क़ में अश्क़ ही कहाँ है

मुस्कुराहट जहाँ है
सभ्यता वहाँ है
दूध और घी की बहती नदियाँ वहाँ है
सजदे में झुकता सबका जबीं वहाँ है

खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है

खील = भुना हुआ चावल; मुरमुरा, जिसे दीवाली के दिन हाथी-घोड़े जैसे दिखनेवाले बताशों के साथ खाया जाता है
ज़बाँ = ज़ुबान, वचन
मुसल्सल ज़मज़मा = uninterrupted music
अक्स = reflection
रक़्स = नृत्य 
अश्क़ = आँसू 
जबीं = forehead 

10 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

खील खिलाना अलग है


खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है
खील खिलाना है दीवाली का अनिवार्य अंग
मुस्कुराना मानवता का मज़हब है

मुस्कुराहट है
तो मोहब्बत है
मोहब्बत है
तो हम है

मोहब्बत यक़ीं है
मोहब्बत ज़बाँ है
वादा करो
तो निभाना अवश्य
यह कहती आशिक की धड़कन है

मोहब्बत जवाँ है
मुसल्सल ज़मज़मा है
जिसका अक्स हो रक़्स में
ऐसे इश्क़ में अश्क़ ही कहाँ है

मुस्कुराहट जहाँ है
सभ्यता वहाँ है
दूध और घी की बहती नदियाँ वहाँ है
सजदे में झुकता सबका जबीं वहाँ है

खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है

खील = भुना हुआ चावल; मुरमुरा, जिसे दीवाली के दिन हाथी-घोड़े जैसे दिखनेवाले बताशों के साथ खाया जाता है
ज़बाँ = ज़ुबान, वचन
मुसल्सल ज़मज़मा = uninterrupted music
अक्स = reflection
रक़्स = नृत्य 
अश्क़ = आँसू 
जबीं = forehead 

10 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Saturday, November 7, 2015

आज रात चाँद इक महफ़िल में छा गया


आज रात चाँद इक महफ़िल में छा गया
धुन तो नहीं थी कोई मगर गीत गा गया

रोशनी में रोशनी दिखती नहीं मगर
दीपक जलें अनेक तो रामराज्य आ गया

अपने ही हाथों में है अपनी ही आबरू
कह-कह के और भी कई कहकहे लगा गया

जानते हो, बूझते हो, फिर सवाल क्यूँ 
कौन था वो कौन था जो मुझको भा गया

हम सब लगे हैं खोज में अपने ही चाँद की
हम सब की राह में कोई अलख जगा गया

अलख जगाना = to rise oneself and arouse others in the name of invisible 

7 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Sunday, November 1, 2015

मिले न फूल तो पत्तों की फ़ोटो खींच ली


मिले न फूल तो पत्तों की फ़ोटो खींच ली
कुछ इस तरह से मैंने एल्बम भर ली

समस्याएँ अनेक हैं हमारी दुनिया में 
प्रभु का नाम लिया और आँखें बंद कर ली

मैं कौन हूँ और किसे मैं क्या शिनाख़्त करूँ 
मुझे तो जो भी मिला उससे दोस्ती कर ली

चले भी आओ कि हम साथ-साथ चलें
कहाँ है वो जो कहे मुझसे बातें पगली

हुआ हूँ आज मैं अपने आप से ऐसे मुख़ातिब 
कि मैं हूँ ख़ुद ही मगर लगूँ हमशकली

शिनाख्त = to identify 
मुख़ातिब = किसी की ओर मुँह करके बातें करने वाला; अभिमुख
(इंदीवर से क्षमायाचना सहित)
1 नवम्बर 2015
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