Friday, March 24, 2017

ट्रम्प भी कैसी है पहेली

ट्रम्प भी
कैसी है पहेली, हाए
कभी तो हँसाए
कभी ये रुलाए


कभी देखो ट्रम्प नहीं माने
पीछे पीछे सपनों के भागे

एक के बाद एक एक्ज़ीक्यूटिव अॉर्डर 

साईन करता चला जाए यहाँ 


जिन्होंने उगाए यहाँ संतरे

उनसे कहे जाओ अपने घर रे
वही चुनकर ख़ामोशी
यूँ चले जाए अकेले कहाँ


(योगेश से क्षमायाचना सहित)

24 मार्च 2017

सिएटल | 425-445-0827

tinyurl.com/rahulpoems


Thursday, March 23, 2017

पटरियाँ

पटरियाँ अगर मिल जाएँ तो दुर्घटना तय है

रंग भी अगर मिल जाएँ तो बेरंग हो जाते हैं

सुर भी अगर अपनी पहचान खो दें 

तो कोलाहल मच जाता है


पृथक-पृथक ही सृष्टि पनपे

पृथक-पृथक इसका रूप मनोहर 

कोई फूल बने, कोई पत्ती बने

कोई गुलमोहर, कोई अमलतास बने


पृथकता ही से पीरियाडिक टेबल

पृथक-पृथक खिले फल-फूल यहाँ 

घुल-मिल के ही रह जाते तो

ख़ाक को तकती ख़ाक यहाँ 


यूँ मिल जाने की, मिट जाने की

चाह है उलटी धार सखा

अब निकल पड़े हो, तो निकल पड़ो

मुड़-मुड़ के देखो कि वो तार कहाँ


https://youtu.be/Md0L3q4wdq4











Monday, March 20, 2017

तू अपना पता दे

जो है नहीं 

उसी से कहता हूँ

तू अपना पता दे

तू है कि नहीं 

इतना बता दे


जब दो ही नहीं हैं

तो ये सम्वाद कैसा?

जब एक ही है

तो ये विवाद कैसा?


अपनी ही धारणाओं की

शक्ल की पूजा

जैसे अपना हो बच्चा

पर है तो दूजा 


दीपक जलेगा

तो ज्योति रहेगी

पूजा होगी

तो ख्याति रहेगी


यदि दीपक जलें

तो मिट्टी के ही जलें

यह आवश्यक नहीं 

यह आग है व्यापक

इसका मापक नहीं


राहुल उपाध्याय | 20 मार्च 2017 | सिएटल 


Sunday, March 19, 2017

March Madness

Madness is celebrated 

March is spent glued to the chair

And then we complain 

Leadership is not fair


Life goes on

As it did last year

We go to work, school, earn, learn, spend 

With abundance and no fear


Every generation

(no matter what the circumstances)

Has learnt 

Three Rs

And whatever is current 


So, count your blessings 

Do your part 

Hope for the best

And lead with heart. 


March 19, 2017

Seattle | 425-445-0827

Thursday, March 2, 2017

ख़ुद भीगता नहीं है और भीगो देता है धरा

ख़ुद भीगता नहीं है
और भीगो देता है धरा
कुछ इस तरह से होली
खेलता है आसमां

(जैसे दूर बैठा 
कोई एन-आर-आई
घर भेजता है धन
और आने को कहो
तो नहीं करता है जतन)

और धरती चलती रहती है
आगे बढ़ती रहती है
उससे मिलने के लिए

उसे क्या मालूम
कि वो गिर रही है
घूम रही है
एक धुरी के चारों ओर

और आसमां
फैलता जाता है
फूलता जाता है
खिसकता जाता है 
दूर
और दूर
और दूर

जो है ही नहीं 
उससे मिलना ये कैसा?
आँखों का दिल से
छलावा ये कैसा?

ज्ञान और विज्ञान में 
यही एक बुराई है
मिलन की आस भी
रास आई है

2 मार्च 2017
सिएटल | 425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems