आसमान में यान
पटरी पे नुकसान
भारत है यारो
एक विडम्बना महान
न पीने को पानी
न खाने को धान
महाशक्ति बनने का
रखता गुमान
अमिताभ हैं प्राण
शाह रुख हैं जान
गली-गली में दुश्मन
हिन्दू-मुसलमान
बिन्द्रा हैं शान
ठाकरे हैवान
दोनों का जनता
करती सम्मान
सीमा पे खेलता
जो जान पे जवान
मरणोपरान्त उसका
गाती गुणगान
और देश जो त्यागे
वो कहलाए महान
सर पे बिठाए
और उसे माने विद्वान
लुटते हैं शिक्षक
लुटते संस्थान
इस देश का कौन
करेगा उत्थान?
मजहब है बिकता
मन्दिर है दुकान
ईश्वर को छोड़
पंडित पूजे जजमान
गाँव से शहर की ओर
सबका रूझान
बिगड़ते हैं घर
उजड़ते हैं खलिहान
बढ़ती है भीड़
खोता है इंसान
फ़ैलते हैं शहर
सिकुड़ते हैं उद्यान
और योगी महोदय?
लेकर थोड़ा सा ज्ञान
कहते हैं नाक आपकी
एक जादू की खान
बस हवा निकली
और हुआ दर्द अन्तर्धान
मिनटों में कर लो
हर रोग का निदान
लगाते है शिविर
जहाँ होता है ध्यान
बढ़ती बेरोज़गारी की ओर
न देते हैं ध्यान
इस देश का देखो
कैसा संविधान
जो देते हैं वोट
नहीं जानते विधान
हर पांच साल
बस एक ही तान
लोकतन्त्र ने थमा दी
लुटेरों को कमान
असहयोग और अनशन से
जो जन्मी थी सन्तान
60 बरस की है
पर है अब भी वो नादान
कोइ भी समस्या
करनी हो निदान
असहयोग अनशन ही
इसे सूझे समाधान
दिल्ली,
24 अक्टूबर 2008
+91-98682-06383
Friday, October 24, 2008
भारत - एक विडम्बना महान
Posted by Rahul Upadhyaya at 3:21 AM
आपका क्या कहना है??
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Friday, October 17, 2008
करवा चौथ
भोली बहू से कहती हैं सास
तुम से बंधी है बेटे की सांस
व्रत करो सुबह से शाम तक
पानी का भी न लो नाम तक
जो नहीं हैं इससे सहमत
कहती हैं और इसे सह मत
करवा चौथ का जो गुणगान करें
कुछ इसकी महिमा तो बखान करें
कुछ हमारे सवालात हैं
उनका तो समाधान करें
डाँक्टर कहे
डाँयटिशियन कहे
तरह तरह के सलाहकार कहे
स्वस्थ जीवन के लिए
तंदरुस्त तन के लिए
पानी पियो , पानी पियो
रोज दस ग्लास पानी पियो
ये कैसा अत्याचार है ?
पानी पीने से इंकार है!
किया जो अगर जल ग्रहण
लग जाएगा पति को ग्रहण ?
पानी अगर जो पी लिया
पति को होगा पीलिया ?
गलती से अगर पानी पिया
खतरे से घिर जाएंगा पिया ?
गले के नीचे उतर गया जो जल
पति का कारोबार जाएंगा जल ?
ये वक्त नया
ज़माना नया
वो ज़माना गुज़र गया
जब हम-तुम अनजान थे
और चाँद-सूरज भगवान थे
ये व्यर्थ के चौंचले
हैं रुढ़ियों के घोंसले
एक दिन ढह जाएंगे
वक्त के साथ बह जाएंगे
सिंदूर-मंगलसूत्र के साथ
ये भी कहीं खो जाएंगे
आधी समस्या तब हल हुई
जब पर्दा प्रथा खत्म हुई
अब प्रथाओ से पर्दा उठाएंगे
मिलकर हम आवाज उठाएंगे
करवा चौथ का जो गुणगान करें
कुछ इसकी महिमा तो बखान करें
कुछ हमारे सवालात हैं
उनका तो समाधान करें
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:50 AM
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Thursday, October 9, 2008
रात और दिन पाँव पड़ूँ
रात और दिन पाँव पड़ूँ
मेरी सजनी फिर भी नैन चुराए
जाने कहाँ मंत्र है वो
मैं जो पढ़ूँ और वो मुस्काए
जप-तप फूल-शूल कछु काम न आए
मन में शक़ जब घर कर जाए
शूल चुभे तो निकल भी जाए
शक़ बस फूलता-फलता ही जाए
मुझे नहीं कहे मेरी गलती है क्या
फिर भी मुझको रोज सताए
ऐसा सलूक जो कोई करे
जग में जुल्मी वो कहलाए
एक बार मेरी अरज सुनो
एक बार मुझसे बात तो करो
इतना रहम तो करो ओ सनम
कि तेरा लिखा ख़त आज मुझे मिल जाए
दुनिया में यूँ तो दोस्त मिलते नहीं
मिलते हैं तो यूँ बिछड़ते नहीं
हम दोनो मिले पर मिल न सके
जाने किस किस की लगी हमें हाए
पढ़-पढ़ थक गया वेद-वेदान्त
कोई न मिला जो करे मन को शांत
और कोई क्यूँ करे उपचार
घर का ही भेदी जब लंका ढाए
सिएटल,
9 अक्टूबर 2008
(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:57 PM
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Labels: relationship, valentine
Sunday, October 5, 2008
मेरे भोले-भाले दिल के टुकड़े
कर दिए उसने कुतर के
लिखूँ मैं कविता
ताकि आप सम्हलें
और रहे उससे बच के
शादीशुदा थी
न शर्म-हया थी
फिर भी समझ न पाया
मुझे क्या हुआ था
इक बेवफ़ा पे
हाए मुझे क्यूँ प्यार आया
कर के बेवफ़ाई
हँसे वो सितमगर
तड़पूँ मैं आहें भर भर के
भाग्य विधाता
क्यूँ है सताता
मन मेरा पूछता हाए
जितना मैं जोड़ूँ
उतना ही टूटे
मन मेरा डूबता जाए
मेरी दुर्दशा की
वजह वो बताए
कर्म हैं पिछले जनम के
मीठा-मीठा बोले
इत-उत डौले
पल पल मुझको लुभाए
मैं सीधा-सादा
फ़ंस गया बेचारा
जाल ही ऐसे फ़ैलाए
सुन न सकोगे
करतूतें सारी
कहने लगूँ जो उन्हें गिन-गिन के
सिएटल,
5 अक्टूबर 2008
(मजरुह से क्षमायाचना सहित)
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:13 AM
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Labels: Majrooh, parodies, relationship
Friday, October 3, 2008
मुर्गी का कभी न पेट खोलो
छोड़-छाड़ के सारे काम
जप रहा था मैं नाम घनश्याम
तभी कामदेव ने मार कर बाण
कर दिया मेरा काम तमाम
प्रकट हुई एक सुंदर सी सूरत
मानो अजंता की मनोहारी मूरत
मधुर-मधुर वो गीत सुनाए
भाव-भंगिमा से मुझे भरमाए
मटक-मटक कर इत-उत डोले
मन में भड़काए प्यार के शोले
बड़े-बूढ़ों ने एक बात कही थी
सीधी सच्ची बात कही थी
कि चाहे जितने तुम अंडे ले लो
पर मुर्गी का कभी न पेट खोलो
कि जो कुआँ तुम्हारी प्यास बुझाए
झांक के न कभी उसके अंदर देखो
लेकिन मुझमें इतना होश कहाँ था
सोच-सोच कर मेरा हाल बुरा था
कि जो ओढ़-आढ़ कर है इतनी सुंदर
अनावृत्त हो तो लगेगी और भी सुंदर
यही सोच कर मैंने हाथ बढ़ाया
धीरे से उसका पल्लू हटाया
मेरी किस्मत भी देखो कैसी फूटी
कि ऐन मौके पर नींद थी टूटी
किरणें ओढ़े खड़ी रही शाम
मैं पड़ा रहा दिल को थाम
सिएटल,
3 अक्टूबर 2008
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:46 PM
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Labels: misc