Thursday, October 9, 2008

रात और दिन पाँव पड़ूँ

रात और दिन पाँव पड़ूँ
मेरी सजनी फिर भी नैन चुराए
जाने कहाँ मंत्र है वो
मैं जो पढ़ूँ और वो मुस्काए

जप-तप फूल-शूल कछु काम न आए
मन में शक़ जब घर कर जाए
शूल चुभे तो निकल भी जाए
शक़ बस फूलता-फलता ही जाए

मुझे नहीं कहे मेरी गलती है क्या
फिर भी मुझको रोज सताए
ऐसा सलूक जो कोई करे
जग में जुल्मी वो कहलाए

एक बार मेरी अरज सुनो
एक बार मुझसे बात तो करो
इतना रहम तो करो ओ सनम
कि तेरा लिखा ख़त आज मुझे मिल जाए

दुनिया में यूँ तो दोस्त मिलते नहीं
मिलते हैं तो यूँ बिछड़ते नहीं
हम दोनो मिले पर मिल न सके
जाने किस किस की लगी हमें हाए

पढ़-पढ़ थक गया वेद-वेदान्त
कोई न मिला जो करे मन को शांत
और कोई क्यूँ करे उपचार
घर का ही भेदी जब लंका ढाए

सिएटल,
9 अक्टूबर 2008
(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)

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3 comments:

seema gupta said...

पढ़-पढ़ थक गया वेद-वेदान्त
कोई न मिला जो करे मन को शांत
और कोई क्यूँ करे उपचार
घर का ही भेदी जब लंका ढाए
'wah kya bata khee hai, good expressions'

regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पढ़-पढ़ थक गया वेद-वेदान्त
कोई न मिला जो करे मन को शांत
और कोई क्यूँ करे उपचार
घर का ही भेदी जब लंका ढाए

bhai wah, bahut khoob

Anonymous said...

जप-तप फूल-शूल कछु काम न आए
मन में शक़ जब घर कर जाए
शूल चुभे तो निकल भी जाए
शक़ बस फूलता-फलता ही जाए

bahut sahi shak ka paudha jaldi falta fulta hai,esko na hi lagaye achha,bahut bhavpurn sundar rachana ke liye bahut badhai