न आए कहीं से, न कहीं जाएंगे हम
यहीं के यहीं रह जाएंगे हम
फलता है, फूलता है, झड़ता है पेड़
गिर के वहीं फिर उगता है पेड़
न आया कहीं से, न जाए कहीं पर
मिट-मिट के बनता जाए यहीं पर
गुरूत्वाकर्षण ही सृष्टि का गुरू धरम है
इसके ही आगे पीछे घुमते लघु धरम है
जो उड़ता है, झूमता है, विचरता है नभ में
घूम-फिर के वो भी मिल जाता है जल में
इसलिए न सोचो कि तुम कल जाओगे मर
और मर के जाओगे किसी ईश्वर के घर
अरे! यहीं है ईश्वर, यहीं है घर
इसके अलावा नहीं कोई दूसरा है घर
इसलिए न सोचो कि कल जाओगे मर
और सारा परिश्रम तुम्हारा जाएगा व्यर्थ
अरे! कल ग्राहम बेल यदि न कुछ करते करम
तो सोचो भला आज कैसे होता आई-फोन?
तो करम करो और खूब करो
अपने हाथों से कुछ इजाद करो
समाज, संस्कृति का कुछ विकास करो
सच है कि मरने के बाद सब यहीं रह जाएगा
लेकिन याद रखो कि
न कहीं से आए हो तुम, न कहीं जाओंगे तुम
यहीं के यहीं रह जाओंगे तुम
सिएटल । 513-341-6798
25 अगस्त 2010
Wednesday, August 25, 2010
न आए कहीं से, न कहीं जाएंगे हम
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:59 AM
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3 comments:
पहली बार आपके व्लाग पर आया और सुंदर रचना पढने को मिली , बधाई
Achha Hai Bhai
bahut achha likha hai Rahul Ji. Geeta saar saa hai hai Rahul Ji
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