बाकी सब क्षणभंगुर बस
तम से ही निकले, तम में समाना
फिर क्यूँ दीप का डंका बजाना?
तम जो न होता तो हम भी न होते
माँ की कोख में न अंकुरित होते
प्रकाश से होता प्रेम हमें तो
पहली भेंट में न जम कर रोते
तम ही सृष्टि का एक अनवरत सत्य
प्रकाश के मिलते हैं सिर्फ़ छुटपुट पुंज
तम न मिटा है न कभी मिटे
जहाँ भी जाओ वहाँ ये मिले
दीप जो जलता है तो जला करे
तम भला किसी से काहे लड़े?
वो तो आँधी की फ़ितरत है जो
दीप की लौ को डराती फिरे
सिएटल | 513-341-6798
16 नवम्बर 2010