अपना धन
दूर देश की बैंकों में
रंग बदल के बैठा है
आओ चलो
कुछ करें
देशवासियों ने आंदोलन छेड़ा है
धन क्या है?
धन तो हाथ का मैल है
आएगा
और जाएगा
लेकिन
उन लोगों का क्या होगा
जो देश छोड़-छाड़ के बैठे हैं
लाख बुलाने पर भी
वसुधैव कुटुम्बुकम का
राग अलापते रहते हैं
सिएटल । 513-341-6798
10 जून 2011
Friday, June 10, 2011
मुर्गी चाहिए या अंडे?
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:38 PM
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Thursday, June 2, 2011
नामों का सच
नाम हिलेरी, न तनिक हिले री
नाम अगाथा, लिखे गाथा पे गाथा
इन सबको देख के घूमा है माथा
कब, कहाँ कोई क्या कर जाए?
नाम के विपरीत रास रच जाए
नागपुर में नाग बसते नहीं हैं
कानपुर में कान पकते नहीं हैं
पटना में लड़की पटती नहीं है
विदिशा में दिशा मिलती नहीं है
संतरों को खा के संत रोते नहीं है
मंजु के सर में मन जू नहीं है
बाईट की दुनिया बा-ईंट नहीं है
मौसीकी से मौसी का रिश्ता नहीं है
चार पाई में मिलती चारपाई नहीं है
सैलाना निवासी सैलानी नहीं है
रसगुल्लों से यारो रस गुल नहीं है
और गुलाब-जामुन जो है वो फल-फूल नहीं हैं
जब से पता चला नामों का सच ये
रहता हूँ शीला-सुशीला से बच के
जाता नहीं जहाँ होती हो पूजा
रुकता नहीं जहाँ दिखती है श्रद्धा
सत्यम का काम ठुकराता सविनय हूँ
नामों को ठोक-पीट के ही उठाता कदम हूँ
सिएटल
2 जून 2011
513-341-6798
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मौसीकी=music
सैलानी=tourist
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:45 PM
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