Sunday, August 21, 2011

अजन्मे का जन्मदिन


जो अजन्मा है उसका जन्मदिन क्यों मनाते हो तुम?
और जन्मदिन है तो पुण्यतिथि भी अवश्य ही होगी
याद आए तो कभी बताना मुझे

सिएटल
21 अगस्त 2011

Saturday, August 20, 2011

झाड़-फानूस के कमरों में



पी-आर है मगर प्यार नहीं
पोर्ट्रैट है मगर परिवार नहीं
झाड़-फानूस के कमरों में
बच्चों की किलकार नहीं

शिरडी में लाखों दे देंगे
लेकिन भाई को देंगे हज़ार नहीं
झाड़-फानूस के कमरों में
अपनों से सरोकार नहीं

अपनी सामर्थ्य का दम भरते हैं
सुनते किसी की बात नहीं
झाड़-फानूस के कमरों में
संतों का सत्कार नहीं

मरता है कोई तो मरने दो
इनका ये संग्राम नहीं
झाड़-फानूस के कमरों में
चढ़ता किसी को बुखार नहीं

20 अगस्त 2011
सिएटल

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पी-आर = PR = Public Relations
पोर्ट्रैट = Portrait
झाड़-फानूस = Chandelier

Tuesday, August 16, 2011

गली-गली में शोर है


गली-गली में शोर है
नेता सारे चोर हैं
करने को हम कुछ नहीं करते
बस देते देश छोड़ है

आज मिला है एक सुअवसर हमको
आज हो रही भोर है
फिर क्यूँ यारो हम हैं सोते
चलो लगाते जोर है

धरना-अनशन क्या कर लेगा
कहते कुछ मुँहजोर हैं
उनसे हमें हैं बस इतना कहना
यह शस्त्र बड़ा बेजोड़ है

गाँधी ने हमें दी आज़ादी
अब आया हमारा दौर है
फिर क्यूँ यारो हम हैं सोते
चलो लगाते जोर है

करने से ही कुछ होता यारो
क्यूँ ना करने की होड़ है
कर्म किए जाकर्म किए जा
यहीं गीता का निचोड़ है

जब जब जनता एक हुई है
हुआ नतीजा पुरजोर है
फिर क्यूँ यारो हम हैं सोते
चलो लगाते जोर है

Sunday, August 14, 2011

ऐ मेरे वतन के लोगो

ऐ मेरे वतन के लोगो, तुम खूब कमा लो दौलत
दिन रात करो तुम मेहनत, मिले खूब शान और शौकत
पर मत भूलो सीमा पार अपनो ने हैं दाम चुकाए
कुछ याद उन्हे भी कर लो जिन्हे साथ न तुम ला पाए

ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख मे भर लो पानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पार करने वाला हर कोई है एक एन आर आई
जिस माँ ने तुम को पाला वो माँ है हिन्दुस्तानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

जब बीमार हुई थी बच्ची या खतरे में पड़ी कमाई
दर दर दुआएँ मांगी, घड़ी घड़ी की थी दुहाई
मन्दिरों में गाए भजन जो सुने थे उनकी जबानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

उस काली रात अमावस जब देश में थी दीवाली
वो देख रहे थे रस्ता लिए साथ दीए की थाली
बुझ गये हैं सारे सपने रह गया है खारा पानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

न तो मिला तुम्हे वनवास ना ही हो तुम श्री राम
मिली हैं सारी खुशीयां मिले हैं ऐश-ओ-आराम
फ़िर भला क्यूं उनको दशरथ की गति है पानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

सींचा हमारा जीवन सब अपना खून बहा के
मजबूत किए ये कंधे सब अपना दाँव लगा के
जब विदा समय आया तो कह गए कि सब करते हैं
खुश रहना मेरे प्यारो अब हम तो दुआ करते हैं
क्या माँ है वो दीवानी क्या बाप है वो अभिमानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

तुम भूल न जाओ उनको इसलिए कही ये कहानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

Friday, August 12, 2011

राखी आए, राखी जाए

साधन बढ़े, संसाधन बड़े हैं
फिर भी मन में कुछ ऐसे रोड़े पड़े हैं
कि
न बहन राखी भेजे, न भाई उपहार दिलाए
कोरी बधाई से दोनों काम चलाए

स्काईप-फ़ेसबुक पे करें लम्बी बातें
लेकिन लिफ़ाफ़े में रोली-अक्षत रखी न जाए
राखी आए, राखी जाए
पर्व की खुशबू कहीं न आए

बहन भाई से हमेशा दूर रही है
घर-संसार में मशगूल रही है
लेकिन इतनी भी कभी लाचार नहीं थी
कि भाई का पता भी पता नहीं है
सिर्फ़ एस-एम-एस से काम चलाए
घिटपिट-घिटपिट बटन दबाए

पर्व की उपेक्षा
ये करती पीढ़ी
चढ़ रही है
उस राह की सीढ़ी
जिस राह पे डोर का मोल नहीं है
तीज-त्योहर का कोई रोल नहीं है
संस्कृति आखिर क्या बला है
इस पीढ़ी को नहीं पता है
बस पैसा बनाओ, पैसा बटोरो
किसी अनुष्ठान के नाम पे काम न छोड़ो
24 घंटे ये सुई से भागे
कभी रुक के न मन में झांके
कि इस दौड़ का आखिर परिणाम क्या होगा?
जब होगी जीवन की शाम, क्या होगा?

सिएटल,
12 अगस्त 2011

Friday, August 5, 2011

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे stock market गिराया गया है मेरे लिए
तू अबसे पहले हज़ारों में बिक रही थी कहीं
तूझे cheaper बनाया गया है मेरे लिए
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि ये crash, ये correction मेरी किस्मत है
ये collapsing prices हैं मेरी खातिर
ये volatality और ये uncertainty मेरी किस्मत है
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे तू split होती रहेंगी उम्र भर यूंही
बढ़ेगी तेरी earnings per share यूंही
मैं जानता हूं कि तू dot-com है मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे मिल गया IPO कौड़ियों में कहीं
दो trades में ही मालामाल हो गया हूँ मैं
सिमट रही है तमाम दौलत मेरे खाते में
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

(साहिर से क्षमायाचना सहित)

Thursday, August 4, 2011

दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें

दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें
पकड़ के मीन, मीन खोते रहें

कमाया मगर गवाँया समझ
जो फल न सके बीज बोते रहें

चश्मे को नैनों ने चश्मा किया
टप-टप टीप-टीप रोते रहें

स्टेशन कई आए मगर
उतरें नहीं बस सोते रहें

अब क्या किसी से कोई कहानी कहे
न वो दादा रहें, न वो पोते रहें

हमने तो की मोहब्बत मगर
दाग समझ वो धोते रहें

सिएटल
4 अगस्त 2011