दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें
पकड़ के मीन, मीन खोते रहें
कमाया मगर गवाँया समझ
जो फल न सके बीज बोते रहें
चश्मे को नैनों ने चश्मा किया
टप-टप टीप-टीप रोते रहें
स्टेशन कई आए मगर
उतरें नहीं बस सोते रहें
अब क्या किसी से कोई कहानी कहे
न वो दादा रहें, न वो पोते रहें
हमने तो की मोहब्बत मगर
दाग समझ वो धोते रहें
सिएटल
4 अगस्त 2011
Thursday, August 4, 2011
दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:59 AM
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1 comments:
वाह-वाह...
स्टेशन कई आए मगर
उतरें नहीं बस सोते रहें
दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें
पकड़ के मीन, मीन खोते रहें...
क्या कहने!
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