Thursday, August 4, 2011

दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें

दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें
पकड़ के मीन, मीन खोते रहें

कमाया मगर गवाँया समझ
जो फल न सके बीज बोते रहें

चश्मे को नैनों ने चश्मा किया
टप-टप टीप-टीप रोते रहें

स्टेशन कई आए मगर
उतरें नहीं बस सोते रहें

अब क्या किसी से कोई कहानी कहे
न वो दादा रहें, न वो पोते रहें

हमने तो की मोहब्बत मगर
दाग समझ वो धोते रहें

सिएटल
4 अगस्त 2011

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1 comments:

Neeraj Kumar said...

वाह-वाह...

स्टेशन कई आए मगर
उतरें नहीं बस सोते रहें

दिन पर दिन, दीन दीन होते रहें
पकड़ के मीन, मीन खोते रहें...

क्या कहने!