और कृत्रिम फूल
कब तक झोंकेंगे
भक्त की आँखों में धूल?
एक न एक दिन हटेगी नज़रों से 'वूल'
और नज़र आयेगा 'नेचर' का 'रूल'
कि जीवन-मरण दोनों के बीच
हैं सुख-दु:ख नवल पौधों के बीज
कभी एक फलेगा तो कभी एक सूखेगा
ये क्रम न रूका है न कभी रो के रूकेगा
माथा टेकने से नहीं मिटते हैं रोग
एक न एक दिन समझ जाएंगे लोग
कि सुख-दु:ख है मन की एक अनुभूति
सभ्य समाज की एक अनिवार्य रीति
वो पल जो हमें देता है सुख
उसी पल में हम खोज लेते हैं दु:ख
बेटा हुआ तो बहुत खुशी हुई
पर साथ ही साथ चिंता भी हुई
कि बढ़ा हो के क्या ये बड़ा बनेगा?
ऊँचा ओहदा क्या पा के रहेगा?
24 अगस्त 2013.
सिएटल । 513-341-6798