Wednesday, October 9, 2013

इसके सिवा जहाँ है कहाँ

जीना यहाँ, मरना यहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ

जी चाहे जब मुझको जल-खाद दो
जी चाहे जब सर काट दो
फलूँगा वहीं, गिरूँगा जहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ

योनियाँ कई बदलूँगा मैं
फिर भी यहीं जन्मूँगा मैं
स्वर्ग यहीं, नर्क भी यहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ

कभी आम के पेड़ पे फलता हूँ मैं
कभी बन के बंसी बजता हूँ मैं
आम भी यहीं, श्याम भी यहाँ
इसके सिवा जहाँ है कहाँ

(शैली शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
9 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

Last की lines बहुत अच्छी लगीं:

"कभी आम के पेड़ पे फलता हूँ मैं
कभी बन के बंसी बजता हूँ मैं
आम भी यहीं, श्याम भी यहाँ
इसके सिवा जहाँ है कहाँ"

हम यहीं पर रहते हैं और बार-बार यहीं आते हैं - सोचें तो यह एक तरह से simple और straightforward बात है और वैसे गहरी और complex भी है। मन में सवाल उठता है कि सच क्या है।

End में "इसके सिवा जाना कहाँ" का twist "इसके सिवा जहाँ है कहाँ" बढ़िया लगा! एक शब्द बदल कर कविता का सार बन गया।