Thursday, February 20, 2014

एक दिन जड़ें उभर आएगी

सीमेंट बिछाते वक़्त
किसने सोचा था कि
एक दिन
जड़ें उभर आएगी
सीमेंट बिखर जाएगी
पथ में रोड़े अटकाएगी


-X-X-X-X

सीमेंट बिछाते वक़्त
किसने सोचा था कि
एक दिन
जड़ें उभर आएगी
सीमेंट बिखर जाएगी
पथिक को कुछ क्षण के लिए रोक लेगी
उसे
दूर की ही नहीं, पास की भी
उपर की ही नहीं, नीचे की भी
दुनिया से अवगत कराएगी


ठोकर तो लगेगी
लेकिन
एक नया अनुभव होगा
एक याद बनेगी
जहन में एक तस्वीर खींचेगी
और चाहे कुछ हो न हो
एक कविता तो ज़रूर बनेगी


-X-X-X-X-

घर से निकलते वक़्त
किसने सोचा था कि
आज एक कविता बनेगी?


-X-X-X-X-

आई-टी में पढ़ते वक़्त
आई-टी में काम करते वक़्त
अंग्रेज़ियत की लीपापोती करते वक़्त
किसने सोचा था कि
एक दिन
हिंदी में कविता फूटेगी
और पथ प्रज्वलित करेगी


20 फ़रवरी 2014
सिएटल । 513-341-6798


 

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1 comments:

Anonymous said...

"एक दिन
जड़ें उभर आएगी
सीमेंट बिखर जाएगी
पथ में रोड़े अटकाएगी"

कविता की पहली thought कितनी गहरी है - वो (cement) जो जड़ों को सम्भाले हुए था, जड़ के उभरने पर एक दिन खुद ही रास्ते का बाधा बन जाता है - जिसने सम्भाला वही बाधा बना!

कविता कब, कैसे, और क्यूँ बनती है यह तो मुझे नहीं पता मगर जब कोई situation हम पर गहरा असर करती है तो दिल से जो बात निकलती है - कविता बनकर, गीत बनकर, painting बनकर - वो हमारे inner state की reflection होती है।

जड़ का उभरना अच्छा भी हो सकता है तो कभी बुरा भी। अगर जड़ दुःख देने वाली है - जैसे की किसी बुराई की जड़ - तो उसका उभरना बेहतर है; अगर कोई valuable चीज़ जड़ से उखड़ जाती है या उखाड़ दी जाती है तो बहुत दुःख होता है। लेकिन यह भी सच है कि एक strong जड़ कभी पूरी नहीं उभरती , उसमें जान बाकि होती है - सही वक्त आने पर उससे फिर एक जीवन उभरता है, फिर नयी जड़ें बनती हैं।