Tuesday, May 13, 2014

आज रात इतनी गर्मी थी

आज रात इतनी गर्मी थी
कि चाँदनी धूप लग रही थी
ट्यूलिप्स के लिप्स खुलने लगे थे
और आँख?
आँख होकर भी
आँख नहीं लग रही थी

मैं जग रहा था
सब सो रहे थे
पंखे के शोर में

पंखे के शोर में
ओशन का शोर याद आ रहा था
कुछ गरज रहा था
कुछ बरस रहा था
कोई याद आ रहा था

13 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

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2 comments:

Anonymous said...



"आज रात इतनी गर्मी थी
कि चाँदनी धूप लग रही थी"- गर्मी का ultimate एहसास! :)

Light-hearted कविता है। Expressions और contrasts बढ़िया हैं - Tulips के lips; tulips बंद थे, गर्मी से खुल रहे हैं; आँख खुली है पर गर्मी से बंद नहीं हो रही है।

पँखे के शोर से ocean के shore का transition बढ़िया लगा! पहले तेज़ गर्मी और फिर ocean का ठंडा shore - पढ़कर सोचा: अच्छी कविता है ये, कहाँ शुरू कहाँ खतम, वो यादें हैं कौन सी, कवि हो गए क्यूँ mum :)

Anonymous said...

कविता में गर्मी का मौसम है, galaxy के चाँद-सितारे हैं और ocean की ठंडक है। दिन में इतनी गर्मी देखकर मुझे लस्सी का glass और infinite पत्तों वाले evergreen पेड़ों की छाया याद आ रही है! :)