Monday, July 7, 2014

अकेलेपन का अब अहसास नहीं है

बच्चे गए
बीवी गई
घर है खाली-खाली मेरा
इधर जाऊँ
उधर जाऊँ
हर जगह लगे भूतों का डेरा

खिड़्कियाँ बंद हैं
दरवाज़े बंद हैं
पूरी तरह से सुरक्षित हूँ मैं
सब सकुशल है
सब सुव्यवस्थित है
फिर भी किसी बात से भयभीत हूँ मैं

सीढ़ी चढ़ते
गर फ़िसल पड़ूँ मैं
तो क्या किसी को आभास भी होगा?
खिड़कियाँ बंद हैं
दरवाज़े बंद हैं
कैसे कोई मेरे पास पहुँचेगा?

दरवाज़े पे क्या भीड़ भी होगी?
मालाओं से ढकी मेरी तस्वीर भी होगी?

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ज़िंदगी मेरी बहुत व्यस्त है
सुरसा से लम्बी टु-डू लिस्ट है

खाना बनाओ
बर्तन मांजो
कपड़े धोओ
इस्त्री फेरो
घास काटो
पौधों को पिलाओ
वेक्यूम मारो
झाड़ू-पोंछा-फटका मारो
डाक देखो
बिल चुकाओ
बाज़ार जाओ
सौदा लाओ
विम्बल्डन देखो
वर्ल्ड-कप देखो
मोदी की सरकार को नापो
अच्छे दिन की परिभाषा ढूँढो

अकेलेपन का अब अहसास नहीं है
टु-डू लिस्ट कान्स्टेन्ट कम्पेनियन है

रात सोऊँ
तो घूरे काम अधूरे
सुबह उठूँ
तो चार-छ: और जा जुड़े

7 जुलाई 2014
सिएटल । 513-341-6798
 

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1 comments:

Anonymous said...

यह क्या हुआ? बस Wimbeldon और World Cup हैं to-do list में? Lata-Kishore के गाने नहीं? Amitabh-Dharmendra की फिल्में नहीं? :) "बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे, नए हैं तेवर और नए ही रंग हैं मेरे" :)

रचना में दोनों parts में continuity है। आपने "मुस्कुराता हुआ चहरा" कविता में जो सवाल सोचे थे, इस कविता में कहीं उनका जवाब है:

"नल से पानी टपक रहा है उसे टाईट कर देना
फ़्रिज का बल्ब बुझ गया है उसे बदल देना
बाथरूम में बैठकर नहाने के लिए स्टूल ले आना
खाली घर काटने को न जाने कब दौड़ेगा
अभी तो कई रस्में पूरी करनी हैं..."

To-do list हमें busy रखती है, हमारे efforts को direction देती है, समय का सही use करवाती है इसलिए उसका होना ज़रूरी है। मगर उसकी entries कुछ तो default होती हैं और कुछ हमारी priorities पर dependent होती हैं। इसलिए हमें कभी-कभी अपनी to-do list पर चिंतन करते रहना चाहिए!

"अच्छे दिन की परिभाषा ढूँढ़ना" बढ़िया काम है जो कभी पूरा होगा नहीं! :)