Thursday, December 18, 2014

सबसे बड़ा सम्बल


मेरे हर्षोल्लास की कोई सीमा नहीं रही
जब मैंने उसे 
अपनी हाथों की लकीरों में
नाचते-झूमते देखा

मैं उससे खुश था
और वो मुझसे

कितना सरल हो जाता है जीवन
जब दृष्टिकोण बदल जाता है

दुनिया दुनिया है
समाज समाज है
लेकिन इन पर न आपकी
खुशी का दारोमदार है

सबसे बड़ा सम्बल
सबसे बड़ा सच यही है कि
आप आज हैं
दिल धड़क रहा है
खून दौड़ रहा है
सांस चल रही है
चाहे ज़ुबाँ कोई भी भाषा बोले
आँख कोई भी नज़ारा देखे
कान कोई भी धुन सुने
हाथ कुछ भी करे
- शस्त्र उठाए
- शास्त्र पढ़े
- प्रोग्राम लिखे
- गोबर थेपे
- घड़े घड़े

दिल को धड़कना है तो धड़कता है
खून को दौड़ना है तो दौड़ता है
सांसों को चलना है तो चलती है

जीवन को चलना है
चलते ही रहना है

कितना सरल हो जाता है जीवन
जब दृष्टिकोण बदल जाता है

18 दिसम्बर 2014
सिएटल । 
513-341-6798

Monday, December 15, 2014

सब एक-दूसरे को आईना दिखाते हैं


सब एक-दूसरे को आईना दिखाते हैं
पर ख़ुद को कहाँ समझ पाते हैं

जो समझे नहीं समझाते हैं
गुरू-साधु-स्वामी कहलाते हैं

रात की रोशनी में सब हसीन है
दिन में दाग़ कहाँ छुप पाते हैं

हम भी आपसे शरीफ़ होते
पर हम न थोड़ा शरमाते हैं

चलो चलें कहीं और चलें
कहें राहुल जो रूक जाते हैं

Thursday, December 4, 2014

मेरे घर के आसपास अभी भी ज़मीं बर्फ़ है

मेरे घर के आसपास अभी भी ज़मीं बर्फ़ है

तेरी चाहत, तेरी आरज़ू क्या सचमुच इतनी सर्द है?

कमरों में 
कैमरों में
अपने-अपने वाहनों में
हर कोई  क़ैद है
हाड़-माँस का पुतला ढूँढा तो मिलता होमलेस है

रोशनी है
चकाचौंध है
पेड़ हैं
पेड़ पर लगी लाईट्स हैं
देते हैं दान भी
पर क्या मन में नहीं कोई खोट है?

इधर
ठिठुरता है दिल
सिकुड़ता है दिमाग़ 
कटकटाते हैं दाँत
और उधर 
रेस्टोरेंट से आती है 
छुरी-कांटों की
फ़ाईन-चाईना से
खटर-पटर की आवाज़
और
हड्डियों को चीरता
डीन मार्टिन का गीत
"लेट ईट स्नो, लेट ईट स्नो, लेट ईट स्नो"

4 दिसम्बर 2014
सिएटल । 513-341-6798

Wednesday, December 3, 2014

पतंग सा चाँद

पतंग सा चाँद

जाड़ों की रात में 
पत्ते रहित पेढ़ की
सूखी टहनियों में 
फँसा था

फँसा क्या था
फँसाया गया था
मेरी रचनात्मक नज़रों द्वारा

करूँ भी तो क्या करूँ?
कैमरे में 
ऐसी ही तस्वीरें क़ैद की जाती हैं
कलर के ज़माने में 
श्वेत-श्याम प्रिंट की जाती हैं
बड़ी महंगी फ़्रेम में जड़ दी जाती हैं
और
किसी रईस के घर के आधे-अधूरे रोशन गलियारे की शोभा बन जाती हैं
हाथ में पेग लिए लोग उसका मूल्याँकन करने लग जाते हैं

और उधर
चाँद ढलता रहता है
टहनियाँ ठिठुरती रहती हैं
तथाकथित कला के क़द्रदानों के वाणिज्य से अपरिचित-अनभिज्ञ-अनजान

3 दिसम्बर 2014
सिएटल | 513-341-6798

Monday, December 1, 2014

बर्फ़ चली गई और सर्दी छोड़ गई

बर्फ़ चली गई और सर्दी छोड़ गई

मायनस 10 डिग्री सेल्सियस में ठिठुरता छोड़ गई

चलो, चलें कहीं और चलें जहाँ माहौल हो गर्म
मन-माफ़िक वातावरण के पीछे भागना मेरा धर्म

डार्विन का भी सिद्धांत कहे जो भागे वो बुलन्द
अमरीका जन्मा, भारत पनपा, भगोड़ा ने किया देश स्वतंत्र

नई पीढ़ी हमेशा आगे भागी
बूढ़े रहे फ़िसड्ड
जड़ से जुड़े जड़ कहलाए 
और धीरे-धीरे जाए सड़

नाभि ना भी होती तो भी क्या न होता मेरा जन्म?
होता तो पर अपनी ही जड़ से मैं रहता अनभिज्ञ-अचेत

इसी नाभि ने
इसी जड़ ने
मुझे बार-बार दिया झकझोड़
जब-जब मैंने नया रिश्ता जोड़ा
और पिछले को दिया पीछे छोड़

1 दिसम्बर 2014
सिएटल । 513-341-6798