Saturday, July 11, 2015

न तुम हो मेरे लायक


न तुम हो मेरे लायक
न मैं हूँ तुम्हारे लायक
फिर भी हम दोनों नालायक नहीं हैं

तुम हो तो सृष्टि है
सावन में होती वृष्टि है

न तुम बटन दबाते हो
न कोई आदेश देते हो
तुम्हारे पूर्वनिर्धारित नियम 
कुछ ऐसे अकाट्य हैं
कि
बादल अपने आप 
उमड़ते हैं
घुमड़ते हैं
एवं यथासमय, यथापरिस्थति
बरस जाते हैं

पूरे ब्रह्माण्ड में
ग्रह-उपग्रह 
नियमित रूप से
चलते रहते हैं

मैं भी
तुम्हारे निर्धारित नियमों के अंतर्गत
अपना जीवन निर्वाह करता हूँ
तुम्हारे नियमानुसार 
जन्म लेता हूँ
पर्दा गिराता हूँ

मैं तुम्हारी दी हुई सामग्री से
कभी कुछ निर्माण करता हूँ
तो प्रसन्न हो जाता हूँ
कभी कुछ ढह जाता है
तो दु:खी हो जाता हूँ

यह तो हुई
हम दोनों के लायक होने की बात

न लायक कैसे हुए?

तुम मेरे लायक इसलिए नहीं कि
तुम अपने आप को प्रकट नहीं करते
तुम्हारा अहसास मेरी इन्द्रियों के परे है

(और फिर 
तुम कभी टीवी पर भी नहीं दिखते
कभी तुम्हारा कोई समाचार भी नहीं आता)

और मैं तुम्हारे लायक इसलिए नहीं कि
मुझमें इतनी शक्ति नहीं 
मुझमें इतना सामर्थ्य नहीं 
कि
मैं एकाग्रचित्त होकर
तुम्हारा ध्यान कर सकूँ
तुम्हें पा सकूँ

एक सुझाव है
हो सके तो अमल करना

जड़ को तो है
चेतन को भी
अपना अहसास करा देना
हमेशा नहीं तो
कभी-कभी तो करा ही देना

ताकि
तेरा नाम लेकर जंग न हो

11 जुलाई 2015
चित्तोड़गढ़

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1 comments:

Anonymous said...

ईश्वर visible नहीं होते पर उनका अहसास हमें होता है। जैसे-जैसे हमारा रिश्ता उनसे गहरा होता है, हम दुश्मनी और नफरत से दूर जाने लगते हैं। आपकी प्रार्थना बहुत अच्छी है कि हमें भगवान की presence feel हो और हमारे अंदर लड़ाई-झगड़े की इच्छा ही समाप्त हो जाये।