Sunday, July 19, 2015

कुआँ और टंकी



वो था गहरा
यह है ऊँची
वो था खुला
यह है बन्द 
उसमें थी मेहनत
यह है आसान

वहाँ बालटी-बालटी
खींचते थे हम
इसमें टोंटी घुमाई
और बूँद-बूँद भर लो गागर
(हाँ पीना हो तो आर-ओ लगाओ
नहाना हो तो कोई बात नहीं )

अब क्या बताए
क्या सही और क्या ग़लत 
बस एक बात है
कि
पहले
मन की सुनते थे
अब
नेता-अभिनेता-महात्माओं की सुनते हैं

जो उपर से आता है
जल्दी पकड़ में आता है
मन की गहराई से खींचने में 
वक़्त लगता है
परिश्रम होता है

17 जुलाई 2015
दिल्ली 

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


2 comments:

Anonymous said...

कविता में पुराने और नए का comparison अच्छा लगा। Last lines deep हैं:
"जो उपर से आता है
जल्दी पकड़ में आता है
मन की गहराई से खींचने में
वक़्त लगता है
परिश्रम होता है""!

RK said...

Very Nice and deep