Thursday, September 3, 2015

अब कहाँ किसमे इतना सब्र है

अब कहाँ किसमे इतना सब्र है

कि दो दिन इंतज़ार करे

और गर्म राख में हाथ खराब करे

 

बस बटन दबाया

और एक ठंडा कलश हाथ आ जाता है

 

और आप अमेज़ॉन प्राईम के मेम्बर हैं 

तो फिर वो दिन दूर नहीं

जब डेश के बटन को दबाते ही

हज़ारों मील दूर पड़ा पार्थिव शरीर

मिनटों में राख हो जाएगा


न टिकट खरीदने की झंझट

न प्लेन में चढ़ने के लिए एक लम्बी उबाउ कतार

न एम्स्टर्डम के सुरक्षाकर्मी को रटे-रटाए सवालों के जवाब देना

न आधी रात घर पहुँचना

और बढ़ती गर्मी और घटते परिवार

के बीच मन ही मन यह समझ आना कि

अब तुम बड़े हो गए हो

घर आए छोटे बच्चे नहीं हो

कि मन-माफ़िक़ खाना बनेगा

पिकनिक की बातें होगी

गोलगप्पे खाए जाएगे

 

और हाँ

जल्दी ही एक ड्रोन सर्विस भी तैयार हो जाएगी

ताकि गंगा भी न जाना पड़े

स्मार्टफोन पर ही बटन दबाया

और उधर अस्थियाँ विसर्जित

 

पुनश्च:

 

जो पढ़े-लिखे लोग हैं

उन्हें पर्यावरण की बड़ी चिंता है

मुझ कम पढ़े व्यक्ति की बातों में आकर

आप उनका अनादर न करें

 

जितना भी वे कर सकते हैं

कर रहे हैं

एक लाश न जलाकर

 

वैसी ही उनपर

बी-एम-डबल्यू और मर्सीडीज़ चलाने का

बड़ा बोझ है

 

सितम्बर 2015

सिएटल । 425-445-0827

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1 comments:

Anonymous said...

तेज़ रफ़तार जीवन होने की वजह से सबके पास समय की कमी तो दिखती ही है मगर साथ ही भावनाओं की भी कमी लगती है। रिश्तों की नीव तो भावनाओं में ही होती है। जब मन से भावनाएं कम होने लगती हैं तो काम बोझ लगने लगता है और हम shortcuts ढूँढने लगते हैं। कविता में दिए सब examples की जड़ शायद यही है।