Saturday, November 14, 2015

दीवाली किसलिए?


दीवाली की
साज-सजावट
साफ़-सफ़ाई 
जगमगाहट
किसलिए थी?
किसके लिए थी?

राम के अयोध्या आने की ख़ुशी में?
या लक्ष्मी के घर आने की संभावना में?

आनेवाला तो
कब का आ भी चुका
और जा भी चुका

रीझाया तो उसे ही जाता है
जो आनेवाला है

लेकिन
लक्ष्मीजी भी इन दिनों घर ही कहाँ आतीं हैं
सीधे बैंक चली जातीं हैं
और वहीं 
इस खाते से उस खाते में
इधर-उधर होती रहतीं हैं

देखनी हो तो
मोबाईल पर बिट्स और बाईट्स के समन्दर में ही
देखी जा सकती हैं

सच तो यह है कि
आदमी लाख मोबाईल हो जाए
शाम को लौट कर घर ही आता है
आदमी चाहे कितना ही बड़ा हो जाए
अभी भी अंधेरों से डरता है
जब भी दीपक जलता है
उसकी लौ से आकर्षित होता है

दीपक प्रज्वलित होते ही
मन प्रफुल्लित होता है
पथ प्रकाशित होता है

14 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

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2 comments:

Anonymous said...

इस कविता में एक अच्छा सवाल है कि दीवाली के दिन हमारा कितना समय राम जी के अयाघ्या लौटने के दिन को याद करनें में गुजरता है और कितना लक्ष्मी जी को please करने में devoted होता है - इसलिए नहीं कि वो माँ हैं और हम उनसे बहुत प्यार करते हैं - इसलिए कि वो हमें prosperity देंगी। माँ को घर बुलाया, सजावट की, स्वागत किया, सिर्फ उनसे material चीज़ें माँगने के लिए? हर माँ का दिल इतना बड़ा होता है कि वो तो अपने बच्चों की needs बिन माँगे ही पूरी कर देती है और अगर बच्चा दुख में पुकारे तो बच्चे पर अपना सब कुछ लुटा देती है। माँ को घर बुलाना है तो selflessly बुलाओ, रोज़ बुलाओ, उनकी सेवा करो, उन्हें घन्यवाद दो, अपने सुख-दुख बताओ... यह एक दिन की साज-बाज और माँगना किसलिए?

Anonymous said...

"दीपक प्रज्वलित होते ही
मन प्रफुल्लित होता है
पथ प्रकाशित होता है"

जग-मगाते दीपक सदा खुशियों के प्रतीक लगते हैं। दीपक के जलने से एक oridinary स्थान भी पूजाघर जैसा बन जाता है। दीपक की लौ बहुत calming और purifying होती है। इसीलिए knowledge को lamp of light कहा गया है और भगवान को जान लेने को enlightenment कहा जाता है।