Saturday, November 7, 2015

आज रात चाँद इक महफ़िल में छा गया


आज रात चाँद इक महफ़िल में छा गया
धुन तो नहीं थी कोई मगर गीत गा गया

रोशनी में रोशनी दिखती नहीं मगर
दीपक जलें अनेक तो रामराज्य आ गया

अपने ही हाथों में है अपनी ही आबरू
कह-कह के और भी कई कहकहे लगा गया

जानते हो, बूझते हो, फिर सवाल क्यूँ 
कौन था वो कौन था जो मुझको भा गया

हम सब लगे हैं खोज में अपने ही चाँद की
हम सब की राह में कोई अलख जगा गया

अलख जगाना = to rise oneself and arouse others in the name of invisible 

7 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

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2 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 09 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Anonymous said...

कविता अच्छी लगी। एक special बात लगी कि कविता की starting और ending lines एक object - चाँद - पर हैं इसलिए हर दो lines अलग होते हुए भी एक string में जुड़ गयी हैं। सारी lines बढ़िया हैं।
"कह-कह के और भी कई कहकहे लगा गया" - यह wordplay अच्छा लगा।
"कौन था वो कौन था जो मुझको भा गया" में दो बार कौन था कहना बहुत सुंदर लगा।
End की lines बहुत गहरी हैं :
"हम सब लगे हैं खोज में अपने ही चाँद की
हम सब की राह में कोई अलख जगा गया"