Friday, December 11, 2015

जब भी कोई फ़ैसला आता है


जब भी कोई फ़ैसला आता है
हम जज बन जाते हैं
और जब बात अपने पर आती है
तो वकालत करने लगते हैं

दो-चार
समाचार क्या पढ़ लिए
एक-दो
विडियो क्या देख लिए
पा जाते हैं
आधार
पर्याप्त 
किसी को भी
कोई भी
सज़ा
सुनाने के लिए

बस चले
तो
फाँसी पर लटका भी सकते हैं

अच्छा ही हुआ
हम
ज़्यादा 
पढ़े-लिखे नहीं
वरना
आज
किसी कोर्ट में होते
किसी न किसी पर
अपने पूर्वाग्रह
थोप रहे होते 

11 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

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2 comments:

Anonymous said...

यह बात सही है कि दूसरों को judge करना आसान होता है। हमें लगता है कि हम situation को पूरी तरह समझते हैं और हमारा perspective सही है इसलिए किसी और के perspective को समझना ज़रूरी नहीं। हम decision पहले ले लेते हैं और case बाद में सुनते हैं। हम जिससे सहमत नहीं उसे guilty ही मानते हैं चाहे सबूत जो भी कहें क्यूँकि हमें अपनी सोच ही सही लगती है।
"पूर्वाग्रह" शब्द नया सीखा इस कविता से।

Rahul Upadhyaya said...

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Vah! Vah!