Sunday, March 13, 2016

Daylight Saving Time


आज हम भारत के 
और क़रीब हो गए
सुई घुमाई 
और क़रीब हो गए

काश! जैसे घड़ी बदली
वैसे ही दिल भी बदल सकता
छोटी-छोटी बातों पे रोऊँ 
कैसे नसीब हो गए

घर, नौकरी, बीवी, बच्चे
कुछ के लिए ज़िम्मेदारी
तो कुछ के लिए 
सलीब हो गए

अपने तो सपने हैं
हरिनाम ही जपने हैं
कोई और नहीं तो
सतसंगी हबीब हो गए

न धन की, ना धान की
कोई कमी नहीं है
निधन तक आते-आते
सब ग़रीब हो गए

वक़्त बदला सो बदला
पर यह क्या
कि जो हबीब थे
वो रक़ीब हो गए

सलीब = सूली
हबीब = मित्र
रक़ीब = प्रतिद्वंद्वी, rival
Daylight Savings Time = आज 13 मार्च को अमरीकावासियों ने घड़ी एक घंटा आगे बढ़ा दी। इसलिए अब भारतीय समय और अमरीका के समय में एक घंटे का कम अंतर है। 

13 मार्च 2016
सिएटल | 425-445-0827


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1 comments:

Anonymous said...

सुई घुमाकर हम भारत के क़रीब हो गए, अगर इसी तरह सबके दिल भी आसानी से बदलते तो जीवन आसान होता यह बातें अच्छी लगीं। नसीब, हबीब, सलीब, रकीब - सारे शब्द बहुत बढ़िया तरह से use हुए हैं और कविता की सारी lines अच्छी हैं। "न धन, ना धान, निधन" का wordplay अच्छा लगा। कविता का अंत strong है:
"वक़्त बदला सो बदला, पर यह क्या
कि जो हबीब थे, वो रक़ीब हो गये"
सलीब और हबीब का meaning होना helpful था।