घड़े भरकर
जब कोई जल लाता है
तो वो जल
किसी नदी, बावड़ी, या कुएँ का ही होता है
सागर का नहीं
सागर
अथाह है
वृहद है
विशाल है
लुभाता है
आकर्षित करता है
हाथ में हाथ लेकर
किनारे-किनारे चलने को
बाध्य करता है
लेकिन
प्यास
नहीं बुझा पाता है
उसके लिए
वाष्पीकरण आवश्यक है
मेघ बनते हैं
बरसते हैं
पर्वतों की श्रंखलाओं पर
खेत-खलिहानों पर
नदी, बावड़ी, कुओं पर
फूल खिलते हैं
रंग चटखते हैं
पक्षी चहकते हैं
सारी घाटी ख़ुशियों से सराबोर हो जाती है
यही जल-चक्र जीवन का स्रोत है
इसी जल-चक्र में जन्म-मरण है
यही आत्मा-परमात्मा का दर्पण है
और हम हैं कि
जन्म-मरण के चक्र से भयभीत हैं
जबकि इसके बिना प्रकृति रंगहीन है
हम अभिशप्त नहीं
सहायक हैं
हम
जब भी आए
क्यूँ न
कोई पुष्प खिलाए, बाग़ महकाए
किसी सूखे दरख़्त की प्यास बुझाए
मेघ हैं
तो बगिया है
हम हैं
तो ख़ुशियाँ हैं
26 अप्रैल 2016