Tuesday, May 31, 2016
Monday, May 30, 2016
Saturday, May 28, 2016
पियो न कोई पेग
लाल बहादुर नाम था जिनका
पी नहीं कभी उन्होंने लाल
काशी में पढ़नेवाले मित्रगण
पी रहे छक के लाल
पीना-पिलाना क्या बुरा है
जब कर चुके कक्षा पास
सारी उम्र निकल चुकी है
अब तो बुझा ले प्यास
मंदिर-मस्जिद-गिरजा देखे
देखे धर्म-कर्म के द्वार
ईश्वर-अल्लाह कहीं नहीं है
ये सब बातों का सार
इसीलिए तो ले कर बैठे
हम कुछ आज गिलास
हम भी पीएँ, तुम भी पियो
कर दें बोतल खलास
बात सही है
तर्क सही है
पर जीवन जीने की
यह रीत नहीं है
पीना-पिलाना तभी उचित है
जब कर चुको सारे काम
जितने भी ज़रूरतमंद है उनका
जब तुम कर सको नेक इंतॹाम
बचा-बचाकर कर कर दिया
देश का बुरा हाल
अपने ही हाथों से पी गए
देश को बर्फ़ में डाल
इससे सेहत बिगड़ी है
और परिवार का हुआ है सत्यानाश
गाड़ी चलाकर बच्चे मरते
माँ-बाप उठाते लाश
नहीं, नहीं, हरगिज़ नहीं
तुम कर सकते पीने का गुणगान
यह सिर्फ़ तबाही और तबाही
इसमें नहीं कोई शान
सोच समझ कर उत्सव मनाओ
टटोलो आत्म-विवेक
खाओ-पियो-ऐश करो
पर पियो न कोई पेग
भावनाओं की ये बात नहीं है
बात है लॉजिकल बात
तेश में आके ये मत कहना
लो जी कर लो बात
(लाल = red wine)
28 मई 2016
सिएटल | 425-445-0827
Friday, May 27, 2016
Tuesday, May 24, 2016
हमारी बोलती बंद हो गई है
आजकल
हर किसी के पास आई-फ़ोन है
पर किसी के पास भी
आता नहीं कोई फ़ोन है
पहले
डाकिये की राह
दिन में एक बार
देखी जाती थी
आजकल
हम हर घड़ी
फ़ोन को
खोलते-बंद करते रहते हैं
एक नहीं
पचास साधन हैं
एक दूसरे से जुड़ने के
अपनी कहने को
दूसरे की सुनने को
लेकिन नहीं
हम हैं कि
ज्ञान बखाने जा रहे हैं
चुटकुले पर चुटकुले सुनाए जा रहे हैं
एक से बढ़कर एक फ़ोटो दिखाए जा रहे हैं
जैसे किसी रेल के डिब्बे में
कोई मैगज़ीन हाथ लग गई हो
और हम उतावले होकर उसे हर किसी को
दिखाते जा रहे हैं
- ये देखिए, ये है गायत्री मंत्र का सही मतलब
- वाह! क्या फ़ोटो है!
- हे भगवान! ऐसा भी कहीं होता है?
- ये तो कमाल ही हो गया!
- ये कार्टून कितना सटीक है
दरअसल
जब से स्मार्टफ़ोन हाथ आया है
हमारी बोलती बंद हो गई है
और
हम अपना भेजा इस्तेमाल करने के बजाय
दूसरों का भेजा भेजते रहते हैं
सिएटल | 425-445-0827
24 मई 2016
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:16 PM
आपका क्या कहना है??
1 पाठक ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: digital age
Saturday, May 7, 2016
है चाँद पागल, समंदर बेहाल
राधा न हो, मादा न हो
संसार जैसे आधा न हो
क्रश भी न हो, चाहत न हो
जीवन इस क़दर सादा न हो
हर गाँव में, हर शहर में
कोई न हो जिसने चाहा न हो
है चाँद पागल, समंदर बेहाल
दूरी इतनी ज़्यादा न हो
है चाँद पागल, समंदर बेहाल
इश्क़ कभी पुराना न हो
है चाँद पागल, समंदर बेहाल
इश्क़ कभी सयाना न हो
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:17 PM
आपका क्या कहना है??
1 पाठक ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: relationship
सिंहस्थ
सिंहस्थ है बढ़िया और अभूतपूर्व
पर वादे कई हैं मेरे हुज़ूर
कोसों है चलना जिससे पहले जाऊँ मैं कुम्भ
कोसों है चलना जिससे पहले जाऊँ मैं कुम्भ
7 मई 2016
(Robert Frost से क्षमायाचना सहित)
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:04 AM
आपका क्या कहना है??
1 पाठक ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: misc
Subscribe to:
Posts (Atom)